RAIPUR NEWS. हिंदी साहित्य के वरिष्ठ और ख्यातिलब्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें सांस लेने में कठिनाई के चलते 2 दिसंबर को रायपुर एम्स में भर्ती किया गया था, जहां वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखे जाने के बाद मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।

जीवन और साहित्यिक योगदान
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने प्राध्यापन को रोजगार के रूप में चुना, लेकिन अपना पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया। सरल भाषा और गहरी संवेदनशीलता से भरे उनके लेखन ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।
वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। वे हिंदी के 12वें साहित्यकार और छत्तीसगढ़ के पहले लेखक थे जिन्हें यह सम्मान मिला।

प्रमुख कृतियां
कविता संग्रह: लगभग जयहिंद (1971), सब कुछ होना बचा रहेगा (1992), कविता से लंबी कविता (2001), पचास कविताएँ (2011) आदि।
उपन्यास: नौकर की कमीज़ (1979), दीवार में एक खिड़की रहती थी (1997), खिलेगा तो देखेंगे (1996), एक चुप्पी जगह (2018) आदि।
कहानी संग्रह: पेड़ पर कमरा (1988), महाविद्यालय (1996), एक कहानी (2021), घोड़ा और अन्य कहानियाँ (2021)।
उनके उपन्यास नौकर की कमीज़ पर फिल्मकार मणिकौल ने फिल्म भी बनाई थी, जबकि दीवार में एक खिड़की रहती थी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।

सम्मान और पुरस्कार
विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रज़ा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान और मातृभूमि पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष 2021 में उन्हें साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान “महत्तर सदस्य” चुना गया।

साहित्यिक विरासत
शुक्ल कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी रहे। उनके लेखन ने लोकआख्यान और आधुनिक जीवन की जटिल आकांक्षाओं को एक साथ समाहित कर हिंदी साहित्य में नया कथा ढांचा प्रस्तुत किया। मध्यवर्गीय जीवन की बारीकियों और संवेदनात्मक गहराई को उन्होंने अद्वितीय शैली में अभिव्यक्त किया।
विनोद कुमार शुक्ल का निधन हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेंगी।
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