DURG NEWS. कभी जिनके पांवों की थिरकन पर पूरा मंच झूम उठता था, आज वही कलाकार अपने ही घर में बिस्तर पर जकड़े हैं। पंथी नृत्य के पथिक मिलाप दास बंजारे, जिन्होंने देश–विदेश में छत्तीसगढ़ की लोककला का परचम लहराया, आज जीवन की सबसे कठिन घड़ी से गुजर रहे हैं।

मधुमेह की वजह से हुए घाव ने उनका एक पैर छीन लिया। अब नकली पैर लगवाने तक की आर्थिक क्षमता नहीं बची। उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर विनती की है – मुख्यमंत्री जी, अब उम्र 66 साल की हो गई है, काम करने की ताकत नहीं है। कृपया मेरे कटे हुए पैर में नकली पैर लगवा दीजिए… मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।

कला के प्रति समर्पण, जिसने छत्तीसगढ़ को अंतरराष्ट्रीय मंच दिलाया
दुर्ग जिले के जरवाय गांव के मिलाप दास बंजारे बचपन से ही पंथी की लय पर थिरकने लगे थे। आर्थिक तंगी के बावजूद कला के प्रति उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ। अपने गुरु दुकालू राम डहरिया से पंथी सीखकर उन्होंने इसे ही जीवन का धर्म बना लिया। 1987 में उन्होंने रूस के 9 शहरों में लगातार 3 महीनों तक पंथी नृत्य की प्रस्तुति दी। उनके प्रदर्शन ने छत्तीसगढ़ की लोककला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। उन्हें इशुरी, कला रत्न, धरती पुत्र और देवदास बंजारे जैसे अनेक सम्मान मिले। अब तक वे 250 से अधिक मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं।

अब कलाकार टूटा नहीं, लेकिन हालात ने हरा दिया है
कभी मंच की रौनक बढ़ाने वाले मिलाप दास बंजारे अब अपने घर में गुमनाम जिंदगी जी रहे हैं। बीमारी ने पैर छीन लिया, और गरीबी ने उनका आत्मविश्वास। फिर भी वे आज भी उम्मीद नहीं छोड़े हैं अगर नकली पैर लग जाए, तो मैं फिर से बच्चों को पंथी सिखाना चाहता हूँ…

एक कलाकार की पुकार — क्या सरकार सुनेगी?
मिलाप दास बंजारे सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति की पहचान हैं। उन्होंने जिस मंच पर राज्य का मान बढ़ाया, आज वही कलाकार मदद की आस में मुख्यमंत्री के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।




































