अतुल मालवीय
MAHAKUMBH NEWS. कल, अर्थात मौनी अमावस्या को संगम तट पर जो हादसा हुआ, उसे कोई मामूली दुर्घटना नहीं समझना चाहिए। हालांकि मैं इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी तो नहीं लेकिन मेरा अनुमान है कि मैं, मेरी पत्नी और रिश्तेदार इसके तुरंत बाद, शायद पंद्रह बीस मिनिट के अंदर ही दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए थे। हमारी संगम क्षेत्र में एंट्री 2 बजे के पहले ही हो गई थी। कारण, मेरे पास 2.11 का कॉल रिकॉर्ड है जिसमें मैने अपने मोबाइल से एक किशोर को, जो उसके परिवार से बिछुड़ गया था, के चाचा को कॉल लगाकर मिलाने में सहायता की।
काली सड़क से बांध के ऊपर से उतरते ही बाईं तरफ संगम नोज़ के लगभग आधा किलोमीटर पूर्व बड़े (लेटे) हनुमान जी मंदिर निकट ही हमें सायरन बजाती असंख्य एम्बुलेंसों की चीखें स्पष्ट सुनाई दीं। किसी आशंका से हृदय कांप उठा। जैसे ही थोड़ा और आगे बढ़े तो देखते हैं कि पूरा मार्ग ही अवरुद्ध है और नीचे लाखों लोग चिकने पॉलीथिन की पन्नियां बिछाकर लेटे हुए हैं। एक एक कदम देख देखकर रखना पड़ रहा था।
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और थोड़ा आगे बढ़े तो देखते हैं कि पंद्रह बीस युवक बैरिकेड्स के ऊपर चढ़कर उन्हें ज़ोर ज़ोर से हिला रहे हैं। जब हमने कहा कि मात्र दस कदम आगे से ही दाईं ओर मोड़ खुला है तो आपको इन बैरिकेड्स से क्या समस्या है, युवक चिल्लाते हुए आगे भाग गए। मात्र आधा किलोमीटर के मार्ग में ही ऐसे अनेक मंजर दिखे जिनमें स्पष्ट दिख रहा था कि अनेक युवक श्रद्धालु या तीर्थयात्री नहीं बल्कि कोई और ही हैं। एक जगह तो देखा कि कुछ उद्घोषणा मंच पर चढ़कर ही उपद्रव कर रहे हैं। चारों तरफ चप्पल जूतों, कंबलों और कपड़ों के ढेर बिखरे हुए थे।
एक और महत्वपूर्ण बात मैने स्पष्ट नोट की। प्रत्यक्षतया दिख रहा था कि जैसे कुछ पुलिसकर्मी बेमन से ड्यूटी कर रहे हों। संगम नोज़ पर पुलिस की बेरुखी के साथ ही उनकी संख्या में कमी भी मैने ही नहीं बहुतेरे लोगों ने महसूस की। ये कैसे संभव है कि जहां अभी अभी इतना बड़ा हादसा होकर घटा हो, वहां पुलिस का जबरदस्त बंदोबस्त न हो? खटकने वाली बात है। ये बात जगजाहिर है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार आने के पूर्व जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी और राममंदिर आंदोलन में संलग्न हजारों कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मौलाना मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब, भर्ती के सारे नियमों को ताक पर रखते हुए भारी संख्या में ऐसे पुलिस कांस्टेबल्स और अधिकारी नियुक्त किए गए जो भाजपा ही नहीं बल्कि उसकी राष्ट्रवादी विचारधारा से भी खुलेआम घृणा करते थे। इनमें आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों की भी कमी नहीं थी।
अखिलेश यादव ने ऐसे चुनिंदा लोगों को भर्ती तो किया ही, प्रदेश के अधिकांश मलाईदार थानों, जिलों और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर उन्हें काबिज करते हुए संपूर्ण उत्तर प्रदेश को अपनी जकड़ में रखने की कोशिश की। अखिलेश के सत्ताच्युत होने के बाद भले ही ऐसे पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारियों / कर्मचारियों ने खुलेआम विषबमन बंद कर दिया हो, प्रदेश में भाजपा की हिंदुत्ववादी सरकार उनकी आंखों की किरकिरी बनी हुई है। वे उन दिनों को याद करते हुए आहें भरते हैं जब उनकी हेकड़ी चलती थी, जेबें माल से भरी रहती थीं, और भृकुटि तानते ही जनता उनके डर से थर थर कांपती थी।
योगी आदित्यनाथ की इतने बड़े आयोजन के लिए सभी अधिकारियों/कर्मचारियों को साथ लेकर चलने की मजबूरी थी। आखिर ऐसा आयोजन, जिसमें एक दिन में ही गुजरात जैसे बड़े राज्य ही नहीं बल्कि यूरोप के अधिकांश देशों की जनसंख्या से भी अधिक लोग भागीदारी करने वाले हों, बिना पूरे प्रशासन के योगदान के कैसे संभव था?
जहां योगी ये सोच बैठे कि सभी उनके साथ हैं, योगी को फूटी आंखों से भी पसंद न करने वाले, प्रशासन के ऊंचे से लेकर नीचे तक अपनी गहरी पैठ बनाए हुए ऐसे गठजोड़ ने, जो आगामी चुनाव में पुनः अपने आका के सिंहासन पर आरूढ़ होने के साथ ही स्वयं मलाई चाटने के दिवास्वप्न देख रहा है, उनकी पीठ में छुरा भौंकने का कहीं कुत्सित प्रभाव तो नहीं कर दिया? संभव है ऐसा न हो लेकिन योगीजी को इन बातों पर गंभीरता से विचार करने के साथ ही गुप्तचरीय व्यवस्था के माध्यम से गहराई से जांच करवानी चाहिए।
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भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व में प्रयागराज के इस अनूठे समागम की जो जयजयकार हो रही थी, उसमें कलंक का टीका लग जाने से विघ्नसंतोषी प्रसन्न हैं। इतनी सुंदर, बढ़िया व्यवस्था जिसकी कोई तुलना नहीं हो सकती, जो असंभव को संभव बनाने जैसा कार्य था, बल्कि है, में बदनामी का एक प्रसंग जैसे आंख में किरकिरी की तरह कष्टप्रद हो रहा है। गंगा मैया से विनती है कि सत्य को उजागर करने में हमारी सहायता करें जिससे तीर्थराज प्रयाग की फिर से जय जयकार हो।