NAGOUR. खींवसर में सेट हो चुके समीकरण का तिलिस्म टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है। 2008 के बाद लगातार हनुमान बेनीवाल ने इस सीट पर कब्जा जमा रखा है। दूसरी सभी पार्टियों में मनभेद और मतभेद होते रहे लेकिन बेनीवाल का चक्रव्यूह ज्यों का त्यों पड़ा रह जाता है। कितने ही तुर्रमखां आए लेकिन खींवसर में उनकी दाल नहीं गली। इस बार केन्द्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार पर इस बात का दबाव जरूर रहेगा कि खींवसर सीट को जीत कर दिखाए।
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इसके लिए पार्टी ने कई बैठकें की और टिकट दावेदारों को टिकट देने के लिए भी माइक्रो स्तर पर प्लान किया। इस बार भाजपा की ओर से खींवसर में टिकट देने के लिए दो तरीके अपनाए जाएंगे जिसमें जिताउ या पार्टी से खास जुड़ाव वाला चेहरे को षामिल हो सकता है। उधर चुनाव की तारीख तय होने के बाद भी कांग्रेस की चुप्पी टिकट चाहने वालों और कार्यकर्ताओं में शंका बढ़ा रही है। तब सवाल उठता है क्या इस बार टूटेगा खींवसर में बेनीवाल का चक्रव्यूह।
क्या है समीकरण
खींवसर में कुल 2 लाख 83 हजार के करीब मतदाता हैं। जिसमें एक लाख से उपर जाट वोटर हैं। हनुमान बेनीवाल के जाटों के अलाव अन्य जातियों के वोट फिक्स माने जा रहे हैं। एन मौके पर ऐसे कई प्रत्याशी मैदान में आ जाते हैं जो अन्य दलों के वोट लेने में सक्षम हैं। इसी के चलते बेनीवाल की जीत और भी आसान हो जाती है। यही कारण है कि अन्य दल बेनीवाल के फिक्स वोटों पर सेंध नहीं मार पाते। खींवसर सीट की रोचकता इसलिए भी है कि इस बार बेनीवाल खुद मैदान में नहीं है। आरएलपी टिकट किसे देती है यह भी बड़ा फैक्टर है। ऐसे में भाजपा या कांग्रेस जैसे बड़े दल स्थानीय और स्वच्छ छवि वाले आम व्यक्ति को टिकट देकर इस तिलिस्म तोड़ने के मंसूबे बना रहे हैं।
क्या अन्य जाति के उम्मीद्वार की जीत हो सकती है
चुनाव में होने को तो कुछ भी हो सकता है लेकिन खींवसर के वोटर इतने चतुर है कि वो उड़ते पक्षी के पर गिन लें। यदि भाजपा या कांग्रेस जाट के अलावा किसी पर भरोसा करती है तो सभी मतदाता बिना किसी सूबे के एक ही तरफा वोटिंग करते हैं। ऐसे में किसी अन्य जाति के उम्मीद्वार की जीत फिलहाल मुष्किल नजर आती है।