BALOD. जिले के विकासखंड गुरुर स्थित राजा राव पठार में तीन दिवसीय विशाल वीर मेला का आयोजन किया गया। यह आयोजन छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि देने पिछले 10 सालों से हो रहा है। आयोजन में आदिवासी समाज के लोग हजारों की संख्या में एकत्रित हुए। डांग, डोरी व आंगा देव के साथ यहां पहुंचकर लोगों ने पूजा अर्चना की। सभा में पहुंचे वक्ताओं ने जहां जल, जंगल, जमीन का हक पाने आदिवासी समाज द्वारा किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। वहीं ने मेला का आनंद भी लिया।
प्रत्येक वर्ष के अनुसार इस वर्ष भी 8, 9, 10 दिसंबर को तीन दिवसीय विशाल वीर मेला का आयोजन राजा राव पठार में किया गया। आदिवासी समाज का यह आयोजन साल दर साल और विशाल होते जा रहा है। काफी बड़े मैदान में आयोजित मेले में जहां कई दुकानें लगी थी वही विशाल सभा का भी आयोजन किया गया। सभा की तैयारी कुछ इस तरह थी कि विधानसभा चुनाव के बाद जो भी मुख्यमंत्री बनते उन्हें कार्यक्रम में लाने का प्रयास था, लेकिन मुख्यमंत्री चयन में विलंब होने से आयोजन को समाज के प्रमुखों ने संभाला। कार्यक्रम में मुख्य रूप से कांकेर सांसद मोहन मंडावी, सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक व पूर्व सांसद अरविंद नेताम, समाज के प्रमुख व अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष जेआर राणा, भानु प्रतापपुर विधायक सावित्री मंडावी, वीर मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष मानक दरपट्टी, महासचिव कृष्ण कुमार ठाकुर आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
अरविंद नेताम ने कहा कि समाज को समय के साथ बदलना होगा। अपने अधिकारों के लिए सजग रहना होगा। जल, जंगल, जमीन हमारा हक है। इसी में हमारा जीवन है और इसे छीनने की कोशिश करने वालों को करारा जवाब देना होगा। इसके लिए समाज को हमेशा संगठित रहना होगा और समय-समय पर कड़े निर्णय लेने पड़ेंगे। उन्होंने आदिवासी संस्कृति को बचाए रखने इस तरह के आयोजन को और अधिक विस्तृत करने प्रोत्साहित किया। मुख्य अतिथि सांसद मोहन मंडावी ने कहा कि समाज नई दिशा की ओर बढ़ रहा है। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनी सोच को भी विस्तृत रखें। अपने हक के लिए हमें अपनी लड़ाई जारी रखनी होगी। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण किए लोगों को आज आरक्षण का लाभ ज्यादा मिल रहा है। यह गलत है इस ओर समाज को भी ध्यान देना होगा। इससे पहले स्वागत उद्बोधन देते हुए आयोजन समिति के अध्यक्ष मानक दरपट्टी ने समाज को अपने हक के लिए आगे आने आह्वान किया। साथ ही 2010 में आदिवासी महापंचायत की मांग को दोहराया और सरकारों से इस दिशा में प्रयास करने की बात कही। कार्यक्रम का संचालन आयोजन समिति के महासचिव कृष्ण कुमार ठाकुर ने किया।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में दिखी आदिवासी संस्कृति
इस दौरान विभिन्न जगह से पहुंचे लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की रंगारंग प्रस्तुति दी। पारंपरिक वेशभूषा में कलाकारों ने प्रस्तुति देकर आदिवासी संस्कृति का प्रदर्शन किया। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर युवा तक आदिवासी गीतों पर नृत्य की प्रस्तुति दी। पारंपरिक वाद्य यंत्र के साथ अपने देवी देवताओं की पूजा अर्चना को लेकर भी कार्यक्रम में दर्शाया गया।
पीला चावल का तिलक लगाकर सेवा जोहार
आयोजन को विशेष बनाने कार्यक्रम स्थल के प्रवेश द्वार पर आदिवासी वेशभूषा में उपस्थित लोगों ने आगंतुकों के मस्तक पर पीला चावल का तिलक लगाकर व सेवा जोहार कह कर स्वागत किया। लोगों ने भी सेवा जोहार बोलकर उनके अभिवादन को स्वीकार किया। पूरे मेले में आदिवासी समाज के काफी संख्या में लोग पहुंचे थे। जिस तरफ भी नजर जाती आदिवासी वेशभूषा में लोग नजर आते। जंगलों में मिलने वाले सामानों की भी काफी संख्या में यहां दुकान लगी थी।
भारी भीड़, प्रशासन रहा मुस्तैद
आयोजन में पहुंचने वाले लोगों की संख्या को देखते हुए पार्किंग सहित अन्य व्यवस्था जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने संभाल रखी थी। काफी संख्या में पुलिस के जवान तैनात थे। आने जाने में लोगों को परेशानी ना हो इसके लिए निर्धारित स्थान पर वाहनों का पार्किंग कराया गया था। शुरू से लेकर अंत तक यातायात व्यवस्था भी पुलिस ने संभाल रखी थी। इतनी तगड़ी व्यवस्था होने के बाद भी भीड़ के कारण आयोजन की समाप्ति के बाद लगभग घंटे भर तक लोग फंसे रहे।
देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना
मेला स्थल पर वीर नारायण सिंह की विशाल प्रतिमा भी बनाई गई है। इसके अलावा बूढ़ादेव व आंगादेव भी स्थापित है। मेले में आने वाले लोगों ने श्रद्धापूर्वक वीर नारायण सिंह की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की वहीं बूढ़ादेव व आंगादेव की विधिविधान से पूजा अर्चना भी की। ज्ञात हो कि यह आयोजन पिछले 10 सालों से छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह की शहादत को याद करने के लिए किया जाता है।