RAIPUR. छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनते ही पुरानी यानी भूपेश सरकार की योजनाओं की समीक्षा भी शुरू हो गई है। इसी क्रम में सीएम विष्णुदेव साय ने भूपेश सरकार के डीएफएफ समेत कई कामों पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही शर्त रखी गई है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना पिछली सरकार द्वारा मंजूर किए काम शुरू नहीं किए जाएंगे।
इसी तरह साय सरकार ने मितव्ययिता यानी कम खर्च करने की राह पर चलने के संकेत दे दिए हैं। बहुत जरूरी काम होने पर नई सरकार उसे मंजूरी देगी। इसमें चुनाव के वक्त की गई ताबड़तोड़ घोषणाएं व भूमिपूजन के काम शामिल हैं। इसके साथ ही जिला खनिज संस्थान न्यास से स्वीकृत जो काम शुरू नहीं हुए हैं, उन पर भी तत्काल रोक लगा दी है।
जानकारी के अनुसार केंद्र पोषित और विशेष केंद्रीय सहायता पोषित परियोजनाओं के व्यय पर रोक नहीं रहेगी। वहीं बड़े उपकरण, फर्नीचर, हॉस्पिटल की मशीनें आदि की खरीदी पर रोक लगाई गई है। ऐसे प्रोजेक्ट जिनके टेंडर हो चुके हैं, लेकिन काम प्रारंभ नहीं हुआ है, वे भी रोक गए हैं। ऐसे प्रोजेक्ट जो मंजूर हैं, लेकिन टेंडर जारी होने वाले थे उन पर रोक रहेगी।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद राज्य का पहला बजट 5700 करोड़ रुपए का था जो पिछले साल तक बढ़कर 1.04 लाख करोड़ रुपए तक हो गया था।
दरअसल, पुराने बजट में वन विभाग समेत कई विभागों की वे योजनाएं जो बजट में शामिल रहीं, लेकिन खर्च नहीं किया गया, जिसे फिर से मंजूरी के लिए भेजा गया था, वे काम भी शुरू नहीं होंगे। मालूम हो कि सीएम साय ने शपथ लेते ही मंत्रालय का रूख किया था। उन्होंने वहां कामकाज संभालने के साथ ही वित्त विभाग समेत तीन- चार प्रमुख विभागों की फाइलें खंगाली थी।
दूसरे दिन उन्होंने कैबिनेट में 18 लाख पीएम आवास बनाने की घोषणा को मंजूरी दी। इसके बाद उन्होंने विभागवार सचिवों की बैठक ली। बुधवार को वित्त विभाग ने मंत्रालय से सरकुलर जारी कर पुरानी सरकार के कामों पर रोक लगा दी है। सभी विभागों, राजस्व मंडल के अध्यक्ष, विभागों के अध्यक्षों, कमिश्नरों व कलेक्टरों से कहा गया है कि वे सरकारी व्यय में मितव्ययिता व अनुशासन बरतें।
सरकार से अनुमति के बाद ही शुरू होंगे जरूरी काम
जारी आदेश के मुताबिक वित्तीय अनुशासन के लिए पुराने पत्रों का संदर्भ देते हुए राज्य के बजट से वित्त पोषित सभी एेसे काम जो पिछली सरकार ने मंजूर कर दिए हैं, लेकिन प्रारंभ नहीं किए गए हैं, एेसे कामों व प्रोजेक्ट को शुरू न किया जाए। इसको प्रारंभ करने से पहले शासन से अनुमति ली जाए। इस पर पुनर्विचार के बाद ही फैसला लिया जाएगा। हालांकि इस बंधन से विभागों में और दफ्तरों के मेनटेनेंस व रोजमर्रा की जरूरतों को अलग रखा गया है।