ATUL MALAVIYA. आर्थिक समृद्धि और संपन्नता इज़रायल के नागरिकों को शांतिप्रिय बना रही है। इसके परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास की उसकी रिहायशी बस्तियों पर हमला कर सैकड़ों नागरिकों को मार डालने की हिम्मत हुई?
एक समय था जब दुनिया के सबसे खतरनाक संगठन माने जाने वाले इज़रायल की गुप्तचर संस्था मोसाद ने ऑपरेशन ब्लैक सेप्टेंबर के तहत न सिर्फ उन फिलिस्तीनी आतंकवादियों को दुनिया के कोने कोने से खोजकर मारा था जिन्होंने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों के दौरान पूरी इज़रायली टीम की हत्या कर दी थी बल्कि मोसाद हत्या की ठीक एक रात पहले उन्हें गुलाब के फूल भेजकर संदेश भेजा करता था कि बच सको तो बच लो, कल तुम्हारी इहलीला समाप्त कर दी जायेगी।
अभी अधिक समय नहीं हुआ जब इजरायली प्रधानमंत्रियों, मोशे दायां और आयरन लेडी गोल्डा मायर की टेढ़ी भृकुटियां गाज़ा पट्टी में कोहराम मचा दिया करती थीं। यहूदी कौम, जो दो हजार सालों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, पिछले लगभग पचास सालों से जुझारूपन के साथ ही ताकत की भी मिसाल बन चुकी है।
फिर क्या हुआ जो उस हमास का ये दुस्साहस हो गया कि इज़रायल के अंदर घुसकर उसके इलाकों में सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी, जिस हमास के चीफ का नाम घोषित होते ही इज़रायल एक के बाद एक की तुरंत हत्या कर देता था। एक समय तो ऐसा भी आया था जब मोसाद के डर से हमास ने अपने मुखिया का नाम तक घोषित करना बंद कर दिया।
Complacency की बीमारी
इंग्लिश में एक शब्द है: Complacency. जब भी कोई इंसान, समाज, देश और यहां तक कि महान सभ्यताएं भी भौतिक संपन्नता और प्रगति प्राप्त कर लेते हैं तो उनमें शांति की, अहिंसा की, मिलजुलकर रहने की और यहां तक कि दुश्मन से भी समझौता करने की भावना आ जाती है। लोग कहने लगते हैं कि अरे, झगड़े में टाइम खराब करने से अच्छा तो धंधे में कुछ पैसा कमा लेंगे।
यही Complacency अब उस इज़रायल के नागरिकों में भी धीरे धीरे आती जा रही है जिसका अस्तित्व ही संघर्ष पर टिका हुआ है। दांतों की बत्तीसी के बीच जीभ की तरह चारों ओर से मुस्लिम देशों से घिरा इज़रायल आर्थिक प्रगति और लोकतंत्र में भले ही नई ऊंचाइयों को छू रहा हो, अब उसके नागरिकों में भी चैन की बंसी बजाने की भावना आती जा रही है।
नेतन्याहू की गर्जना
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हालांकि गर्जना की है कि इस दुष्कृत्य को अंजाम देने वाले हमासी आतंकवादियों को ही नहीं वे हमास को भी मिट्टी में मिलाकर ही दम लेंगे, उन्होंने यह भी कहा है कि इज़रायल इसका ऐसा प्रचंड बदला लेगा कि भविष्य में भी फिलिस्तीनियों की उसकी ओर आंखें तरेरने तक की मजाल न हो लेकिन इज़रायल की पार्लियामेंट में स्वयं उन्हें कितना समर्थन मिलता है, देखना होगा।
इज़राइल कर रहा शेर की सवारी
सारांश यह है कि इज़रायल शेर की सवारी कर रहा है, जब तक वह शेर की गर्दन पकड़े उसे दौड़ाता, थकाता रहेगा, तभी तक इज़रायल सुरक्षित है, जैसे ही उसकी पीठ से उतरेगा, शेर उसे खा जाएगा। इज़रायल को उस नीति पर ही चलना होगा जिसमें दुनिया में क्रूरतम मानी जाने वाली उसकी गुप्तचर संस्था “मोसाद” गाज़ा पट्टी और अन्य फिलिस्तीनी इलाकों में चल रही इज़रायल विरोधी गतिविधियों को पनपने से पहले ही हिंसक तरीके से खत्म कर देती थी।
शांति होगी तभी आर्थिक प्रगति संभव
इज़रायली जनता और तेजी से दुनिया में अपना आर्थिक बर्चस्व जमाने वाली इज़रायली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी यह जान लेना चाहिए कि यहां “शांति होगी तभी आर्थिक प्रगति संभव है” वाला मंत्र नहीं चलेगा। अरे, जब देश ही नहीं बचेगा, तुम और तुम्हारे बाल बच्चे ही जिंदा नहीं रहेंगे तब क्या लोकतंत्र, क्या बिलियन डॉलर कंपनियां, क्या तरक्की, क्या जीडीपी और क्या सुख शांति?
पाकिस्तान और ईरान से सावधान रहने की जरूरत
यहां यह बात भी काबिले गौर है कि पाकिस्तान और ईरान जैसे सनकी तानाशाहों और जिहादी मानसिकता से भरे देशों के पास “परमाणु बम” भी है जिसे वे येरूशलम पर कब्जा करने और अपनी खोई हुई जमीन को हासिल करने के लिए इज़रायल का अस्तित्व खत्म करने के लिए अंततोगत्वा “इस्लामिक बम” की तरह करने की हिमाकत कर सकते हैं। हालांकि अमेरिका और उसकी एटमी तकनीक हमेशा इज़रायल के साथ है।
अब आगे क्या होगा इज़राइल का कदम
अभी देखना ये है कि क्या वह इज़रायल जहां पांच साल से ही बच्चों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थी, जहां किसान खेत जोतते हुए भी कंधे पर रायफल रखता था, जहां पवित्र येरूशलम पर कब्जा करने के लिए दुनिया भर के हजारों यहूदियों ने अपनी छातियां इसलिए तान दी थीं कि अरबों की गोलियां कम पड़ जाएं, छातियां नहीं, जहां मोशे दायां और गोल्डा मायर जैसों ने अपनी लीडरशिप से लोगों को फौलाद का बनाकर अरब देशों को बराबर धूल चटाई, वह इज़रायल शांति, संपन्नता और लोकतंत्र के पर्दे में छुपेगा या जैसा कि नेतन्याहू ने चेतावनी दी है ऐसा बदला लेगा कि हमास, फिलिस्तीनी आतंकवादी त्राहि त्राहि कर उठें और दुनिया दांतों तले उंगली दबाकर इस मंजर को देखे।
भारत को इज़राइल से सबक लेने की जरूरत
फिलहाल तो इज़रायल का ही पलड़ा भारी लग रहा है, भविष्य के गर्त में क्या छुपा है, भगवान जानें। हां, भारत को जरूर इज़रायल से सबक लेना चाहिए जहां शांति, क्षमा, अहिंसा और सभी को शरण देने की भावना ने इस महान सभ्यता की ऐसी मिट्टी पलीद की कि आधे से ज्यादा देश की जमीन चली गई, हमारी प्राचीन सभ्यता एवं धर्म वहां से लुप्त हो गए और देश एक हजार साल से अधिक समय तक बर्बरता एवं गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)