ATUL MALAVIYA. मेरी गारंटी है कि यदि आप इसे ध्यान से पढ़ लेंगे तो आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे, ये देशभक्ति की प्रबल भावना जागृत कर देगा। मेरा ये भी अनुरोध है कि इसे अपने बच्चों को बोलकर सुनायें। इससे युवा पीढ़ी को असंभव दिख रहे कठिनतम कार्य को भी लगन के बल पर पूरा करने की प्रेरणा मिलेगी। आज जब गाज़ा पट्टी में तबाही मची हुई है। और इज़रायल एवं फिलिस्तीनी एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हैं, तब आइए जानते हैं वह कौन था जिसने इज़रायल का भविष्य सुरक्षित किया था।
नवंबर 1947 : अरब लीग के सात देशों की बैठक दमिश्क सीरिया में हुई। इसमें आपसी फूट और गुटबाजी खुलकर सामने आयी। इतने धनकुबेरों में कोई भी अपनी अंटी ढीली करने को तैयार नहीं था। फिर भी डेढ़ मिलियन पाउंड का एक “युद्धकोष” बनाने का निर्णय हुआ। संयुक्त सेनाओं का कमांडर कौन होगा, इसपर भी गंभीर मतभेद हो गए। किसी तरह ईराक के “जनरल सफवात पाशा” और सीरिया के “हज अमीन” में फैसला होना था। हज अमीन “हिटलर” का दायाँ हाथ रहा था। धन की कमी अरबों को हथियारों के बाज़ार “प्राग चेकोस्लोवाकिया” जाने में बाधा बन रही थी।
इधर यहूदियों की तरफ भी धन की कमी अरबों से भी बड़ी समस्या थी। कैसी विडंबना थी कि दोनों पक्षों का “प्राग” के एक ही बड़े हथियार डीलर से खरीदी करने का प्लान था? यहूदी एजेंसी के कोषाधिकारी “एलीज़र कप्लान” अभी-अभी अमेरिका से रकम इकट्ठा करने के दौरे से लगभग खाली हाथ लौट आये थे। उन्होंने बताया कि अमेरिका के धनी यहूदी फिलिस्तीन में लड़ाई की खबरें सुन-सुनकर बोर हो चुके हैं। उन्हें अपने बड़े-बड़े व्यवसायों से ही फुर्सत नहीं है।
जब यहूदी आंदोलन के सर्वोच्च नेता “डेविड बेन गुरियन” ने कहा कि हमारे पास धन का अन्य कोई स्रोत नहीं और अब मैं स्वयं अमेरिका जाकर वहाँ के यहूदियों के सामने हाथ पसारूंगा। तब भी अनुमान लगाया गया, पाँच मिलियन डॉलर से अधिक की उम्मीद नहीं है। एक अन्य यहूदी नेता काप्लान का अनुमान था कि हमें युद्ध की अच्छी तरह तैयारी के लिए कम से कम पच्चीस मिलियन डॉलर की ज़रूरत है।
सभा में सन्नाटा छाया हुआ था। बिना धन के हथियार और बिना हथियारों के पराजय, मौत, कोई टाल नहीं सकता। बेन गुरियन ने कहा – मैं और काप्लान फ़ौरन अमेरिका के लिए निकलते हैं। मैं वहाँ मिन्नतें करूँगा, वहाँ के यहूदियों को बताउँगा कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं और स्थिति कितनी गंभीर है।
उसी समय एक युवती पीछे की ओर से उठी और बोली – “बेन गुरियन, यहाँ आपकी जरुरत है, ऐसे विकट समय में आपका इतने लंबे समय के लिए अनुपस्थित रहना उचित नहीं होगा। आप जो काम यहाँ कर सकते हैं, वह मैं नहीं कर सकती। लेकिन आप जो काम अमेरिका जाकर करने की सोच रहे हैं, विश्वास मानिए मैं कर सकती हूँ”। बुजुर्ग बेन गुरियन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, उन्हें अपने बीच में किसी का हस्तक्षेप, किसी की टोकाटाकी बिल्कुल पसंद नहीं थी। बोले – “गोल्डा मायर, ये बच्चों का खेल नहीं है, मैं ही जाऊँगा”।
दो दिन तक इसी पर रात दिन लगातार चर्चा होती रही। तीन दिन बाद एक हल्का सा कोट पहने और मात्र एक हैंडबैग लिए गोल्डा मायर न्यूयॉर्क हवाईअड्डे पर कड़ाके की ठंड में ठिठुरती हुई इमीग्रेशन की खिड़की पर खड़ी थी। जब अधिकारी ने पूछा, आप कहाँ जायेंगीं? तब पर्स में सिर्फ दस डॉलर लिए पच्चीस मिलियन डॉलर की आस में आयी गोल्डा मायर ने जवाब दिया – “यहाँ से शिकागो जाउंगी, जहाँ मेरा परिवार है। सोवियत संघ का भाग रहे यूक्रेन के एक बढ़ई की बेटी को सारी यहूदी कौम अपना परिवार लगती थी।
दो दिन बाद शिकागो के एक बड़े सभागार में यहूदी फेडरेशन अमेरिका के अड़तालीस राज्यों से आये एक से बढ़कर एक धनकुबेर यहूदियों के समक्ष मंच से घोषणा हुई। कहा गया, हमने फिलिस्तीन से आयी हमारी यहूदी साथी गोल्डा मायर को बोलने के लिए मात्र तीन मिनिट का समय दिया है। आप लोग उन्हें सुनिये वे वहाँ के यहूदियों के लिए आपसे धन की अपील करने की इच्छुक हैं। लोगों ने अपने मुँह बिचकाये – “क्या तमाशा है, जब देखो तब ये लोग चले आते हैं पैसा मांगने। अरे हमारे पास और कोई कामधाम नहीं है क्या?” अनेक लोगों ने इस मौके को वॉशरूम जाने के लिए उपयुक्त समझा।
जैसे ही गोल्डा मायर ने अपना नाम सुना, वह कुर्सी से उठी और मंच की ओर बढ़ी। लोगों ने देखा, एक बोला – ऐसा लगता है जैसे बाइबिल से निकलकर कोई देवी हमारे सामने आ गयी हो। एक क्षण गंवाये बिना ही गोल्डा मायर ने बिना किसी तैयारी, बिना कोई कागज़ लिये बोलना शुरू कर दिया।
आप मेरा भरोसा करें जब मैं आपसे कहती हूँ कि मैं यहाँ फिलिस्तीन में रह रहे सात लाख यहूदियों के प्राणों की भीख मांगने नहीं आयी हूँ। विगत एक दशक में साठ लाख यहूदियों का निर्ममतापूर्वक नरसंहार किया गया। मैं ये भी बताने नहीं आयी कि हम सात लाख भी थोड़े समय में ख़त्म होने वाले हैं। ये तो हमें अच्छी तरह पता ही है। मैं सिर्फ आपको एक खतरे के बारे में आगाह करने आयी हूँ। अगर फिलिस्तीन में हम ज़िंदा बचेंगे तो यहूदी कौम इस धरती पर बचेगी, उनकी स्वतंत्रता की आने वाले समय में गारंटी रहेगी।
अन्यथा, कोई संदेह नहीं कि कल को फिर कोई हिटलर खड़ा होगा। कोई और राक्षस किसी न किसी बहाने आपको निशाना बनायेगा और आपको, हाँ आपको भी ख़त्म कर देगा। आपको, जो अमेरिका में वर्तमान में चैन से रहते हुए अपने को सुरक्षित मानते हैं। इसलिए मेरे अमेरिकी यहूदी मित्रो, सवाल सिर्फ हमारे ज़िंदा रहने का नहीं, सवाल तुम्हारे इस पृथ्वी पर अस्तित्व का है। बड़ा सवाल ये है कि यहूदी कौम बचेगी या विलुप्त हो जायेगी। नहीं, हम यदि नहीं बचे तो नहीं बचेगी। न यहूदी राष्ट्र होगा और न यहूदी।
गोल्डा ने बोलना जारी रखा – “चंद महीनों में फिलिस्तीन में एक यहूदी देश जन्म लेगा। हम इसके अस्तित्व के लिए लड़ेंगे। हमारा ऐसा करना स्वाभाविक है। हम अपना खून देकर भी इसे बनायेंगे। साधारण सी बात है हमारे लिए। हममें से सर्वश्रेष्ठ योद्धा इस महान कार्य में शहीद होंगे। हम कोई अहसान नहीं करेंगे। लेकिन उससे भी अधिक निश्चित पता है क्या है? हमारा साहस, आत्मविश्वास। हमलावर कितना भी ताकतवर क्यों न हो, हमारा आत्मविश्वास नहीं डिगा सकेगा।” फिर भी, दुश्मन तोपें, राइफलें, राकेट, मशीनगनें लेकर हम पर चढ़ेगा।
इन सबके सामने हमारा प्रचंड साहस भी कितनी देर टिक पायेगा? ज्यादा समय हमारे सीने इन्हें सह नहीं पायेंगे। हम युद्धभूमि में गिर पड़ेंगे। हमारा बच्चा भी खून की अंतिम बूँद रहने तक संघर्ष करेगा, लेकिन अंत में हम सबके शव शांत होकर निर्जीव युद्धभूमि में पड़े होंगे।
“मैं अमेरिका आयी हूँ आपसे पच्चीस से तीस मिलियन डॉलर्स की राशि लेने, माँगने नहीं। इससे हम भी आधुनिक हथियार खरीद सकें। शत्रु की तोपों का सामना करने के लिए अपने को सक्षम बना सकें। मेरे दोस्तो, हमारा वर्तमान अत्यंत छोटा है। हमें इस राशि की तुरंत आवश्यकता है और जब मैं तुरंत कहती हूँ तो अगले महीने या दो महीने बाद नहीं, हमें आज, बल्कि अभी इसकी ज़रूरत है।”
गोल्डा ने वक्तव्य समाप्त करते करते बोला – “ये आप लोगों पर निर्भर नहीं करता कि हमारा संघर्ष जारी रहे या नहीं, वह तो रहेगा ही रहेगा। हम लड़ेंगे, जेरूसलम की यहूदी कौम न तो अरब मुफ्ती के सामने आत्मसमर्पण का “सफ़ेद झंडा” लहरायेगी और न ही हमारे जीवित रहने तक मुफ्ती को जेरुसलम पर “हरा झंडा” फहराने देगी। हाँ, आप एक बात का निर्णय करने में सक्षम हैं, पृथ्वी पर यहूदी कौम रहे या न रहे। हमें वांछित रकम दे दो, मैं भरोसा दिलाती हूँ विजय हमारी ही होगी।”
पूरे सभाभवन में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। गोल्डा ने सोचा कि उसका प्रयास असफल रहा कि अचानक सारे लोग उठ खड़े हुए और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा भवन गुंजायमान हो गया| कुछ लोग अतिउत्साह में मंच पर ही चढ़कर अपना योगदान देने की घोषणा करने लगे। पंद्रह मिनिट बाद जब कॉफ़ी सर्व की गयी तब तक लगभग एक मिलियन डॉलर नगद एकत्रित हो चुका था। उपस्थित उद्योगपतियों ने अपने बैंकों को ये पूछने के लिए फोन करना शुरू कर दिया कि खातों में कितनी शेषराशि है और अपने नाम के आगे योगदान लिखवा दिया।
कुछ तो इससे भी आगे बढ़ गए। बैंकों से पता किया कितना लोन मिल सकता है और वह राशि नोट करवा दी। लंच के बाद गोल्डा मायर ने किसी को भेजकर डेविड बेन गुरियन को टेलीग्राम भिजवाया – “बीस स्टीफेंस की व्यवस्था आज के आज में हो गयी”। अमेरिकन यहूदी नेता रब्बी स्टीफेंस के नाम पर “स्टीफेंस” कोडवर्ड था एक मिलियन डॉलर के लिए।
शिकागो में मिली सफलता से प्रेरित अमेरिकी यहूदी नेताओं की मदद से गोल्डा मायर का पूरे अमेरिका का टूर शुरू हो गया। उनके साथ में थे “हेनरी मोर्गेथाऊ जूनियर”, अमेरिका के पूर्व ट्रेज़री सचिव। गोल्डा हर शहर, हर कस्बे में एक-एक दिन में तीन चार सभाओं को संबोधित करते हुए घूम रही थी। उन्होंने कहा – “मुझे लगता था जैसे मैं कोई तीर्थयात्रा पर हूँ”। हर जगह यहूदी समुदाय का ज़बरदस्त स्वागत, हर जगह से तेलअवीव में बेन गुरियन को और “स्टीफेंस” मिलने के टेलीग्राम। इधर डेविड बेन गुरियन के बैंक में जो रकम जमा हो चुकी थी वह “एहूद अव्रिएल” को जेविश आर्मी की जरुरत के हिसाब से हथियार खरीदने हेतु सप्लायर के पास “प्राग, चेकोस्लोवाकिया” रवाना करने के लिए पर्याप्त थी।
गोल्डा मायर अपनी पूरे अमेरिकन तीर्थयात्रा में बस एक बार कुछ घबराई सी लगीं। पामबीच फ्लोरिडा में आयोजित डिनर समारोह में यहूदी व्यवसायियों का चकाचौंध करने वाला वैभव, उनकी आभूषणों से लदी महिलाओं के मंहगे फर के कोट और सोच से भी अधिक मंहगी शराब के एक के बाद एक दौर चलते देखकर उन्हें लगा कि इन लोगों को क्या पड़ी होगी कि जेरूसलम की जुडियन पहाड़ी पर यहूदी सैनिक ठंड में ठिठुरते रहते हैं। इनकी “फिल्दी रिच” महिलाओं के हावभाव, यहाँ की स्थिति और फिलिस्तीन के यहूदियों की स्थिति में जमीन आसमान का अंतर देखकर गोल्डा की आँखों से आँसू बहने लगे।
“अमीरी में पढ़े बढ़े ये लोग मुफलिसी और अभाव की बेकार सी बातें क्यों सुनना पसंद करेंगे?” लेकिन आश्चर्य, उन लोगों ने न सिर्फ सुनी बल्कि पामबीच की उस पार्टी के समाप्त होते गोल्डा के पास और डेढ़ मिलियन डॉलर थे, जो प्रत्येक यहूदी सैनिक के लिए ऊनी कोट खरीदने के लिए पर्याप्त राशि थी।
एक महिला जो अमेरिका में “दस डॉलर” का मात्र एक नोट लेकर आयी थी, जब वापिस जा रही थी तब तक “पचास मिलियन डॉलर” मिल चुके थे जो डेविड बेन गुरियन की अनुमानित आवश्यकता से दुगुनी और “सऊदी अरब” की सन 1947 में पूरे साल में हुई पेट्रोलियम बिक्री से तीन गुना थी। तेलअवीव के लिड्डा हवाईअड्डे पर जब गोल्डा मायर उतरी तो वहाँ उसका स्वागत करने के लिए वही बेन गुरियन मौजूद थे, जो पहले स्वयं जाना चाहते थे। उन्होंने कहा – जब इतिहास लिखा जायेगा तब उसमें स्पष्ट लिखा होगा कि एक नौजवान लड़की थी, जिसने यहूदी प्रजाति को ख़त्म होने से बचा लिया था।