KOLKATA. मुकुल रॉय को एक जमाने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद टीएमसी में दूसरा सबसे ताकतवर नेता माना जाता था. फिर एक दौर ऐसा भी आया जब उनके सहारे भाजपा ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर करने की रणनीति पर काम किया, लेकिन अब उन्ही मुकुल रॉय के लिए राजनीतिक हालात इतने बदल गए हैं कि कोई भी उनको अपना मानने को तैयार नहीं है. ममता बनर्जी का कहना है कि मुकुल रॉय भाजपा के विधायक है, तो पश्चिम बंगाल भाजपा के दिग्गज नेता सुवेंदु अधिकारी उन पर धोखा देना का आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि मई 2021 के बाद पश्चिम बंगाल में जब भाजपा कार्यकतार्ओं पर अत्याचार हो रहा था उस समय जिन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा वह भाजपा का आदमी नहीं हो सकता है. जाहिर तौर पर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय को फिर से प्रवेश की अनुमति देने पर भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई में राय बंटी हुई लगती है, जो पश्चिम बंगाल विधानसभा के रिकॉर्ड के अनुसार आधिकारिक तौर पर अभी भी भगवा खेमे के विधायक हैं.
सुवेंदु अधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा को ऐसे रिजेक्टेड नेता की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि, हम बूथ पर पार्टी को मजबूत करने का काम कर रहे हैं. बूथ पर जिन लोगों ने कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी को वोट किया है, हम लोग उन्हें पार्टी के साथ लाने पर काम कर रहे हैं, किसी नेता को लाने की जरूरत नहीं है. हमें ऊपर से किसी नेता को लाने की जरूरत नहीं है. हमें ऐसे रिजेक्टेड लोगों की जरूरत नहीं है. भाजपा बंगाल के विकास के लिए मतदाताओं को जोड़ने का काम रही है और पार्टी को ऐसे नेता की जरूरत नहीं . हालांकि मुकुल रॉय ने नई दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए यह दावा किया कि वे भाजपा में थे और भाजपा में हैं, इसलिए दोबारा भाजपा जॉइन करने जैसी कोई बात नहीं है. रॉय ने पश्चिम बंगाल में भाजपा को मजबूत बनाने के लिए काम करने की बात कहते हुए यह भी कहा कि उनके टीएमसी से इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि वे टीएमसी के सदस्य नहीं हैं.
मुकुल रॉय के दावे के ठीक उलट भाजपा में हालात यह है कि कोई भी उन्हें अपना मानने को तैयार नहीं है. पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली तक पार्टी में कई नेता उनकी वापसी का विरोध कर रहे हैं. सुवेंदु अधिकारी और उन जैसे कई नेता खुल कर मुकुल रॉय का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं राज्य से लेकर दिल्ली तक कई नेता दबी जुबान में उनकी वापसी का विरोध कर रहे हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक पार्टी के ज्यादातर नेता यह मान रहे हैं कि विधान सभा चुनाव के बाद जब संघर्ष करने का दौर आया, तो टीएमसी में शामिल होकर उन्होंने भाजपा को धोखा देने का काम किया। पार्टी के अंदर तो यहां तक कहा जा रहा है कि विधान सभा चुनाव के दौरान ही भाजपा में रहते हुए भी उन्होंने चुनावों में टीएमसी को फायदा पहुंचाने का काम किया जिसकी वजह से राज्य में फिर से ममता बनर्जी की सरकार बन पाई, पार्टी के अंदर उनके कामकाज को लेकर उस समय भी कई सवाल उठाए गए थे, जिन्हे उस समय ज्यादा तवज्जों नहीं दी गई थी, लेकिन इस समय पार्टी आलाकमान के लिए उन आवाजों को नजरअंदाज करना संभव दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि फिलहाल पार्टी जोर-शोर से 2024 में होने वाले लोक सभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है.
कई वरिष्ठ नेता तो यह सवाल भी उठा रहे हैं कि पहले टीएमसी से भाजपा में आना, फिर दोबारा टीएमसी में शामिल होना और अब फिर से अपने आपको भाजपा का विधायक कहना भले ही तकनीकी रूप से उनकी सदस्यता को बचा सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य में उनकी विश्वसनीयता पूरी तरह से खत्म हो चुकी है और इसलिए उन्हें फिर से भाजपा में शामिल करने से पार्टी को कोई फायदा होने वाला नहीं है तो फिर ऐसा करने की जरूरत क्या है? यह सवाल घूम रहा है कि क्या रॉय की पार्टी में दोबारा एंट्री से आने वाले दिनों में भगवा खेमे को कोई मदद मिलेगी. राज्य भाजपा अध्यक्ष और लोकसभा सांसद सुकांत मजूमदार के अनुसार, रॉय का पार्टी में फिर से शामिल होना पार्टी आलाकमान के फैसले पर निर्भर करेगा. दूसरी ओर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और लोकसभा सदस्य दिलीप घोष ने सीधे तौर पर पूछा कि रॉय अपनी वापसी के बाद पार्टी में क्या जोड़ेंगे. भाजपा की राज्य समिति के एक सदस्य ने कहा कि रॉय को पार्टी में दोबारा प्रवेश नहीं देने के तर्क बहुत अधिक हैं. राज्य समिति के सदस्य ने कहा, दूसरी बात, चूंकि रॉय भाजपा विधायक बने हुए हैं, इसलिए उन्हें आधिकारिक रूप से फिर से पार्टी में वापस लाया जा सकता है. इससे निश्चित रूप से पार्टी के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाएगा. उन्होंने कहा, रॉय की वापसी उन लोगों को नाराज कर सकती है जो 2021 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद भी पार्टी के साथ हैं.