NEW DELHI. जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में ‘लू’ लगातार और भी खतरनाक होती जा रही है. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है. अध्ययन के मुताबिक देश का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा और पूरी दिल्ली लू के प्रभावों के ‘खतरे के क्षेत्र’ में है. यह अध्ययन कैंब्रिज विश्वविद्यालय में रमित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया है. अध्ययन में कहा गया है कि ‘लू’ ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति को पहले की तुलना में ज्यादा बाधित किया है.
भारत की जलवायु संवेदनशीलता और एसडीजी प्रगति पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का आकलन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने देश के ताप सूचकांक का इसके जलवायु संवेदनशीलता सूचकांक के साथ एक विश्लेषणात्मक मूल्यांकन किया. ताप सूचकांक तापमान और आर्द्रता दोनों को ध्यान में रखते हुए मानव शरीर को कितना गर्म महसूस होता है, इसका एक उपाय है. जलवायु संवेदनशीलता सूचकांक एक समग्र सूचकांक है जो सामाजिक आर्थिक, आजीविका और जैव-भौतिक कारकों के लिए विभिन्न संकेतकों का उपयोग करता है.
शोधकर्ताओं ने गंभीरता श्रेणियों को वर्गीकृत करने के लिए सरकार के राष्ट्रीय डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म से राज्य-स्तरीय जलवायु संवेदनशीलता संकेतकों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटासेट का उपयोग किया. फिर उन्होंने 20 वर्षों (2001-2021) में एसडीजी में भारत की प्रगति की तुलना 2001-2021 से चरम मौसम संबंधी मृत्यु दर के साथ की.
अध्ययन में कहा गया है कि 90 प्रतिशत से अधिक भारत हीटवेव यानी लू प्रभावों की बेहद सतर्क या खतरे की श्रेणी में है. इसमें बंगाल को छोड़कर सारा का सारा पूर्वी क्षेत्र, उत्तर और मध्य भारत के सभी राज्य शामिल हैं. शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि भारत को एसडीजी को पूरा करने के लिए अपनी जलवायु कमजोरियों का पुनर्मूल्यांकन करने पर विचार करना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भारत गर्म हवाओं के प्रभाव को तुरंत दूर करने में विफल रहता है, तो यह सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति को धीमा कर सकता है.