BENGALURU.1999 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी कांग्रेस के सबसे मजबूत माने जाने वाले गढ़ कर्नाटक के बेल्लारी से लोक सभा का चुनाव लड़ रही थी. उस समय भाजपा आलाकमान ने बिल्कुल आखिरी समय पर सुषमा स्वराज को बेल्लारी जाकर सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा. सुषमा स्वराज ने नामांकन के आखिरी दिन बेल्लारी जाकर अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भरा और सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव प्रचार में जुट गई, लेकिन उनके चुनाव और चुनाव प्रचार की सबसे खास बात यह थी कि हिंदी भाषी सुषमा स्वराज ने केवल सात दिनों के अंदर न केवल कन्नड़ भाषा सीख ली बल्कि उसके बाद वे चुनावी रैलियों में धाराप्रवाह कन्नड़ में भाषण देती भी नजर आने लगी. इस समय कर्नाटक में विधान सभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार अपने चरम पर है और इस बार भी अन्य राज्यों से कर्नाटक गए नेताओं को कन्नड भाषा नहीं आने की वजह से संपर्क और संवाद स्थापित करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा इस बार 150 सीटों पर जीत हासिल करने के लक्ष्य को लेकर चुनाव लड़ रही है, तो वहीं राहुल गांधी भी कर्नाटक की जनता से कांग्रेस को 150 सीटों पर जीत दिलाने की अपील कर रहे हैं.
भाजपा ने राज्य में अपने लिए अब तक की सबसे बड़ी 150 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास बनाने के लिए इस बार गुजरात की तर्ज पर राज्य में 100 ऐसी सीटों की पहचान की है, जिन पर भाजपा 2018 के विधान सभा चुनाव में जीतते-जीतते रह गई थी. इन सीटों पर वर्तमान में कांग्रेस या जेडीएस का कब्जा है. कुछ कमजोर सीटों को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया है. पार्टी ने इन कमजोर सीटों पर विजय दिलाने के लक्ष्य के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली से लेकर आंध्र प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों के अपने 60 नेताओं को कर्नाटक की इन सीटों पर एक महीने तक के लिए तैनात कर दिया है. टीम-60 के इन नेताओं को खासतौर से विधान सभा की उन सीट या सीटों पर पार्टी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी दी गई है, जिसका इन्हे प्रभारी बनाया गया है और साथ ही इन्हे अपने-अपने विधान सभा सीट वाले जिले की अन्य सभी सीटों पर निगरानी रखने की भी जिम्मेदारी दी गई है.
इन नेताओं को यह निर्देश देकर कर्नाटक में भेजा गया था कि उन्हें अपने-अपने दायित्व वाले सीटों पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के साथ मुलाकात कर चुनावी एजेंडे और जनता के मूड को लेकर फीडबैक लेना है ताकि उसके आधार पर पार्टी चुनाव प्रचार की रणनीति और बड़े नेताओं के दौरे, रोड शो और रैलियों को प्लान कर सकें. पार्टी के एक नेता ने बताया कि कर्नाटक में भेजे गए सभी नेता पूरी गंभीरता के साथ अपना काम कर रहे हैं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या आ रही है भाषा की. खासतौर से कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में संवाद करने में इन नेताओं को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस समस्या को कम करने के लिए नेता ने व्यक्तिगत स्तर पर और पार्टी ने सामूहिक स्तर पर समाधान ढूंढ लिया है.
दूसरे प्रदेशों से कर्नाटक गए भाजपा नेता जोर-शोर से कन्नड़ सीखने में लगे हुए हैं. यह बताया जा रहा है कि इन नेताओं का जोर खासतौर से अभिवावदन के उन शब्दों को कन्नड़ भाषा में सीखने पर है जिनका प्रयोग लोग आमतौर पर एक दूसरे से अभिवावदन के लिए करते हैं. मसलन नमस्ते, आप कैसे हैं , मैं ठीक हूं, अंदर आ जाइए, बैठिए, क्या लेंगे आप, कब तक आएंगे, क्या माहौल है। हर नेता यह कोशिश कर रहा है कि वो कम से कम कुछ लाइन तो कन्नड़ भाषा में बोल ही पाएं. इन व्यक्तिगत प्रयासों के साथ ही पार्टी ने भी इन नेताओं की दिक्कतों को समझते हुए संगठन के स्तर पर भी इसका हल ढूंढने का प्रयास किया है. बताया जा रहा है कि पार्टी ने अन्य प्रदेशों से कर्नाटक गए ज्यादातर बड़े नेताओं को उनकी मांग पर एक-एक अनुवादक भी उपलब्ध करा दिया है जिन्हे कन्नड़ के साथ-साथ हिंदी और अग्रेजी भी आती हो. ये अनुवादक ट्रांसलेटर के तौर पर इन नेताओं को लोगों और कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत के दौरान मदद करते हैं.