NEW DELHI : सुप्रीम कोर्ट 1991 के कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर पांच अप्रैल को सुनवाई करेगा। यह कानून 15 अगस्त, 1947 को प्रचलित पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने या उसके चरित्र में परिवर्तन की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है। इसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के नाम से भी जानते हैं। इस मामले में मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा जवाब में देरी के चलते ज्ञानवापी और मथुरा में यथास्थिति से छेड़छाड़ की कोशिश हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो याचिका के सुनवाई योग्य होने पर प्रारंभिक आपत्ति पर सुनवाई के दौरान विचार करेगा।9 सितंबर 2022 को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर केंद्र सराकर को नोटिस जारी किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 31 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा था, बाद में 12 दिसंबर तक जवाब देने को कहा था। उधर, जमीयत उलमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील एजाज मकबूल ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद शीर्षक मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया था। उन्होंने कहा था कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को वहां संदर्भित किया गया है। इसे अब अलग नहीं किया जा सकता है।
पांच अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने सोमवार को जनहित याचिका दायर करने वालों में से एक वकील अश्विनी उपाध्याय की दलीलों पर ध्यान दिया। कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों को वाद सूची में 5 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, उन्हें खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
6 याचिकाओं पर होगी सुनवाई
शीर्ष अदालत ने 9 जनवरी को केंद्र सरकार से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के कुछ प्रावधानों के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था। इसके साथ ही कोर्ट ने जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को फरवरी के अंत तक का समय दिया था। शीर्ष अदालत ने कानून के प्रावधानों के खिलाफ पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक याचिका सहित छह याचिकाओं को सुनवाई के लिए पांच अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया है।
पूरा कानून असंवैधानिक है- याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय
सुब्रमण्यम स्वामी चाहते हैं कि शीर्ष अदालत वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर दावा करने के लिए हिंदुओं को सक्षम करने के लिए कुछ प्रावधानों को “पढ़ें”। वहीं, वकील अश्विनी उपाध्याय ने दावा किया कि पूरा कानून असंवैधानिक है और कुछ प्रावधानों को पढ़ने का कोई सवाल ही नहीं उठता।