Taipei.चीन के नेता शी जिनपिंग की रूस की तीन दिवसीय यात्रा पूरी हो गई और इस दौरान उन्होंने और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक दूसरे की तारीफ की और गहरी दोस्ती का जिक्र किया. दोनों देशों के बीच बरसों पुरानी एवं जटिल मित्रता रही है, जिसमें दोनों देश कभी एक दूसरे के मित्र और कभी दुश्मन रहे हैं. 17वीं सदी के बाद से ही चीन और रूस एक-दूसरे के विदेश मामलों में महत्वपूर्ण रहे हैं जब दोनों देशों के शासकों ने सीमा को लेकर लैटिन में लिखी संधि पर हस्ताक्षर किए. जब आप किसी पड़ोसी देश के साथ हजारों मील की सीमा साझा करते हैं, तो या तो आपके रिश्ते उसके साथ बेहद मधुर होते हैं या फिर बेहद कड़वे.
हालांति चीन और रूस के बीच संबंध मधुर और कड़वे दोनों रहे हैं. पूर्व राजनयिक एवं येल लॉ स्कूल में पॉल साई चाइना सेंटर में वरिष्ठ फेलो सुसन थॉर्नटन ने कहा, ‘चीन और रूस के संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं.’ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हमले और नेशनलिस्ट एवं कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच हिंसक गृहयुद्ध के बाद 1949 में चीनी गणराज्य की स्थापना हुई. रूस सोवियत संघ का हिस्सा था जो एक वैश्विक महाशक्ति था जबकि चीन गरीब, युद्ध से तबाह था और अधिकतर सरकारों की ओर से उसे मान्यता नहीं दी जाती थी.
कम्युनिस्ट नेता माओ जेदोंग (माओत्से तुंग) जोसेफ स्टालिन से छोटे थे, जिन्होंने 1953 में अपनी मृत्यु तक सोवियत संघ का नेतृत्व किया. पहले का चीनी गणराज्य आर्थिक सहायता और विशेषज्ञता के लिए सोवियत संघ पर निर्भर था. 1953 में चीन के अखबारों में एक नारा आया- आज का सोवियत संघ हमारा कल है. अमेरिकन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल सर्विस में सहायक प्रोफेसर जोसेफ तोरिगियन ने कहा कि सोवियत संघ ने 1954-58 में चीन में गृहयुद्ध के बाद पुनर्निर्माण में उसकी मदद के लिए 11,000 विशेषज्ञ भेजे थे. दोनों देशों के बीच औपचारिक सैन्य गठबंधन भी था, लेकिन रूस ने चीन को परमाणु हथियार के लिए तकनीक देने से इनकार कर दिया था. दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर टकराव भी हुए विशेषकर स्टालिन की मृत्यु के बाद.
1956 में तत्कालिन सोवियत प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव ने कम्युनिस्ट पार्टियों के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में स्टालिन के व्यक्तित्व की निंदा की थी. माओ जो पूर्व सोवियत नेता के मॉडल का अनुकरण करते थे, ने इसे व्यक्तिगत रूप से लिया. तोरिगियन ने कहा कि जब माओ ने नेशनलिस्ट पार्टी को चीनी गृहयुद्ध में हराया था और जब उन्होंने नेशनलिस्ट पार्टी के कब्जे वाले ताइवान के दो बाहरी द्वीपों पर गोलाबारी करने का फैसला किया तो उन्होंने ख्रुश्चेव को इसके बारे में जानकारी नहीं दी. ख्रुश्चेव ने इसे गठबंधन में विश्वासघात बताया. 1959 में चीन और भारत के बीच सीमा संघर्ष के दौरान सोवियत संघ तटस्थ रहा, जिससे चीन को लगा कि उसे अपने सहयोगी से पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा है. दोनों देशों के रिश्तों में खटास बनी रही और वर्ष 1961 में चीन-सोवियत अलगाव के तहत उन्होंने अपना गठबंधन तोड़ लिया.
इसके बाद वे खुलेआम एक-दूसरे के विरोधी बन गए. चीन-सोवियत अलगाव के बाद चीन अलग-थलग पड़ गया, लेकिन इससे अमेरिका से संपर्क के रास्ते खुल गए. 1972 में चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का स्वागत किया जिससे माओ की सरकार को विश्व में मान्यता मिली और रूस के खिलाफ चीन और अमेरिका साथ आए. 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद चीन और रूस में संबंधों में सुधार आया. दोनों देशों ने औपचारिक रूप से अपने सीमा विवाद को सुलझाया. बाद के वर्षों में दुनिया में काफी बदलाव आए और दोनों देशों की किस्मत भी बदली. चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि रूस की अर्थव्यवस्था पिछले साल यूक्रेन पर आक्रमण से बहुत पहले ही स्थिर हो गई थी.
आज चीन ही तीव्र राष्ट्रवाद से प्रेरित रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में अमेरिका का सामना कर रहा है. एक बार फिर रूस और चीन के मत एक हैं. पूर्व राजनयिक थॉर्नटन ने कहा कि शी जिनपिंग के नेतृत्व में ‘अब तक हुए नुकसान की भरपाई करने और संबंधों में सुधार की कोशिश में पहले से कहीं अधिक तेजी आई है.’ इस बीच, दोनों नेताओं के बीच समानता और उनके व्यक्तिगत रिश्तों से संबंधों में सुधार में मदद मिली. शी और व्लादिमीर पुतिन दोनों ही पश्चिमी देशों को अपने खिलाफ मानते हैं और उनका मानना है कि आधुनिक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिनायकवादी शासन बेहतर है. रूस ऊर्जा की आपूर्ति करता है और चीन रूस को निर्मित सामान निर्यात करता है. कुछ विशेषज्ञों ने इतिहास का हवाला देते हुए कहा है कि अब इस रिश्ते में चीन रूस से ऊपर हो गया है.