RAIPUR. 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्म साल 1862 में बंगाल में हुआ था। उनके कार्यों की वजह से हर साल स्वामी विवेकानंद की जयंती यानी 12 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह सिलसिला 1984 में की गई सरकार की घोषणा के बाद से अनवरत जारी है। दरअसल, स्वामी विवेकानंद हमेशा युवाओं के लिए प्रासंगिक रहे हैं और उनके अमूल्य विचार और कार्य युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। वह बचपन से ही बुद्धिमान थे। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।
अल्पायु में ही उन्होंने ज्ञान, अध्यात्म, वेद, दर्शन प्राप्त कर लिया और 25 वर्ष की आयु में सांसारिक मोह-माया की दासता से मुक्त होकर तपस्या और वैराग्य का जीवन अपना लिया। दुख की बात ये है कि उन्होंने 39 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।
– कई बार कहा था ‘40 साल से ज्यादा नहीं जी पाऊंगा’
स्वामी विवेकानंद को शायद अपनी मृत्यु का आभास हो गया था। इसलिए उन्होंने कई बार कहा कि वह 40 साल से ज्यादा नहीं जी पाएंगे। स्वामी विवेकानंद ने अपनी बीमारी के बारे में कहा था, ”ये बीमारियां मुझे 40 साल भी पार नहीं करने देंगी।”
स्वामी विवेकानंद की उनकी मृत्यु की भविष्यवाणी सच हुई और मात्र 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई, 1902 को उनका निधन हो गया। मगर, इतनी कम उम्र में ही उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का परचम लहरा दिया।
– स्वामी विवेकानंद को थीं 31 बीमारियां
मशहूर बांग्ला लेखक मणिशंकर मुखर्जी ने कहा था कि स्वामी विवेकानंद 31 बीमारियों से पीड़ित थे। लेखक ने अपनी पुस्तक “मॉन्क एज ए मैन” में कहा है कि स्वामी विवेकानंद अनिद्रा, मलेरिया, माइग्रेन, लीवर, मधुमेह, किडनी, लीवर और हृदय सहित 31 बीमारियों से पीड़ित थे।
अपनी किताब में मणिशंकर मुखर्जी ने इस बात का जिक्र करते हुए लिखा है कि 29 मई 1897 को विवेकानंद ने शशि भूषण घोष को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था, ‘मैं अपने जीवन में कभी बिस्तर पर लेटे नहीं सो सका।’