RAIPUR. पीसीसी यानी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने साल 2018 में अपनाए एक फॉर्मूले पर फिर काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत जो पदाधिकारी संगठन में अभी किसी भी पद पर हैं और वे अपना मन विधानसभा चुनाव लड़ने का बना चुके हैं तो उन्हें सबसे पहले इस्तीफा देना होगा। इसके पीछे का तर्क भी खास है। दिग्गज पदाधिकारियों का कहना है कि एक साल पहले से ही किसी भी कर्मठ पदाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंप दी जाएगी, जिससे संगठन का काम बेहतर तरीके से चलता रहेगा और वे स्वतंत्र होकर पार्टी को जिताने के लिए काम करने के लायक माहौल तैयार कर लेंगे।
आपको बता दें कि वर्ष 2023 में करीब सालभर बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव होना है। इसके लिए सभी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से तैयारियों में जुट गई हैं। सत्ताधारी दल कांग्रेस भी अपने पोजिशन को बरकरार रखने में जुटा हुआ है। आधार पहले से मजबूत हो तो उस पर इमारत भी मजबूत बनती है। ऐसे में पहले सबकुछ व्यवस्थित करने की कवायद पार्टी में शुरू हो गई है। लिहाजा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से सभी जिलों और ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों को यह पत्र लिखा गया है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि यदि आपका मन है विधानसभा चुनाव में दावेदारी पेश करने की तो अभी से अपने पद से इस्तीफा दे दें।
इसका सीधा सा मतलब ये है कि दावेदारी करने के लिए ऐन समय पर इस्तीफेबाजी से संगठन की गतिविधियां प्रभावित होंगी। जहां पदाधिकारियों को प्रत्याशियों के पक्ष में जनता के बीच प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी रहेगी, वहीं सरकार के कामकाज को भी बेहतर तरीके से पेश करना रहेगा। कार्यकर्ताओं को साथ लेकर ही इसे अंजाम दिया जा सकता है। यदि पहले से ही नए पदाधिकारियों की नियुक्ति हो जाती है तो वे अपना मजबूत टीम अभी से तैयार करके रखेंगे और चुनाव के वक्त स्वतंत्र होकर अपना काम करेंगे। अपना विजन भी क्लियर रखेंगे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ये निर्देश जारी किए गए हैं।
– अब शुरू हो जाएगा इस्तीफों का दौर
अब सभी की निगाहें राज्य से लेकर संभाग और जिला स्तर के कांग्रेस संगठन के पदाधिकारियों पर रहेंगी। कारण ये कि अब यदि वे इस्तीफा दे देते हैं इसका सीधा सा मतलब ये होगा कि उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ना है। कुछ की तो सीटों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकेगा तो कुछ का फैसला चौंकाने वाला भी हो सकता है। विपक्षी दलों की भी नजर उन पर रहना तय है।
– 2018 के चुनाव में कारगर रहा था तरीका
साल 2018 के चुनाव में भी इसी फॉर्मूले को अपनाया गया था। तब भी एक साल पहले से नए पदाधिकारियों की नियुक्ति हो चुकी थी। उन्हें पार्टी और अपना विजन क्लियर करने और अपनी टीम तैयार करने के लिए पर्याप्त समय मिला और बेहतर मैनेजमेंट के तहत उन्हें सफलता भी मिली थी, जिससे 15 साल बाद कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता में वापसी हुई थी।