BILASPUR. विजयादशमी पर अहंकार को जलाने के लिए उसके प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाता है। लेकिन, नेताओं का अहंकार आपस में टकरा जाए तो रावण का दहन ही विवाद का कारण बन जाता है। कुछ ऐसी ही राजनीति बिलासपुर नगर निगम में देखने को मिल रही है। इसी के चलते अब यहां एक नहीं बल्कि 12 राम अतिथि बनकर आएंगे और रावण का वध करेंगे। वहीं निगम के इस निर्णय के बाद यह प्रदेशभर में चर्चा का विषय बन गया है।

दरअसल, पूरा मामला प्रदेश में जारी गुटीय राजनीति का ही परिणाम है। बिलासपुर नगर निगम में पूर्व मंत्री और बिलासपुर विधायक स्व. डा. बीआर यादव के समय में नगर निगम की एमआईसी ने एक प्रस्ताव पारित किया था। इसमें तय किया गया था कि नगर निगम की ओर से पुलिस मैदान में रावण दहन के मुख्य कार्यक्रम में स्थानीय विधायक को मुख्य अतिथि बनाया जाएगा, वे ही रावण के पुतले का दहन करेंगे। यही परंपरा पिछले करीब 25 साल से जारी थी। ऐसे में जब कांग्रेसी महापौर वाणीराव थीं तब भी भाजपाई विधायक अमर अग्रवाल को ही अतिथि बनाया गया। विरोधी दल का नेता होने के बाद भी विवाद की स्थिति नहीं बनी। उसके बाद नगर निगम में भाजपा की स्थानीय सरकार रही तो भी विधायक अमर अग्रवाल ही अतिथि बनाए गए थे।
अब नगर निगम की सत्ता में कांग्रेस ही काबिज है और विधायक शैलेष पांडेय भी कांग्रेस से हैं। यहां पर तो कोई दिक्कत या राजनीति आने का सवाल नहीं उठना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं है, असली राजनीति यही शुरू हुई। चूंकि शैलेष को सरगुजा के कद्दावर नेता और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के गुट का माना जाता है। जबकि नगर निगम के महापौर रामशरण यादव समेत अन्य प्रभावशाली कांग्रेसी नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गुट से हैं। ये नहीं चाह रहे थे कि विरोधी गुट का विधायक मुख्य अतिथि बनें और पुतला दहन करें।

दो साल कोरोनाकाल में बीते, अब टालने की थी तैयारी
वर्ष 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तब उस साल यह पर्व मनाया जा चुका था। अगले वर्ष भाजपाई महापौर और कांग्रेसी विधायक शैलेष पांडेय को लेकर राजनीति गर्मा रही थी पर मामला सुलझ गया था। वर्ष 2020 में कांग्रेसी महापौर बने और अगले तीन सालों तक कोरोना का साया रहा। यानी विजयादशमी की राजनीति कोरोना के पिटारे में बंद हो गई। इस साल अब हालात सामान्य हुए तो सभी को उम्मीद थी कि नगर निगम का मुख्य समारोह भी होगा। लेकिन, अतिथि विवाद से बचने के लिए ही महापौर से लेकर अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस साल रावण दहन के कार्यक्रम को लेकर ही रुचि नहीं दिखाई। नगर निगम के अधिकारी भी तैयारियों को लेकर कुछ भी कहने से बचते रहे। इसके बाद नागरिक संगठनों ने परंपरा का हवाला देते हुए आवाज उठाई तब जाकर दो दिन पहले ही उत्सव की तैयारी शुरू की गई।

मुख्यमंत्री को देनी पड़ी दखल
इस बीच विधायक शैलेष पांडेय ने ही फोन कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से चर्चा की। इसमें उन्होंने कहा कि शहर की परंपरा को टूटने से रोकने में वे दखल दें और विजयादशमी उत्सव के आयोजन को लेकर पहल करें। तब मुख्यमंत्री ने स्थानीय कांग्रेसी नेताओं से आयोजन की तैयारी शुरू करने काे कहा।

ऐसे तय हुई 12 अतिथियों की योजना
नगर निगम की ओर से आनन-फानन में रावण दहन कार्यक्रम की योजना बनाई गई तो फिर 25 साल पुरानी परंपरा आड़े आ रही थी, जिसके कारण वे आयोजन को ही टालना चाह रहे थे। तब उन्होंने 12 अतिथि तय करने की सोची और इसे अंजाम दिया गया। अब राम बनकर रावण का दहन करने वाले अतिथियों में सांसद व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अरुण साव, विधायक शैलेष पांडेय, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव, महापौर रामशरण यादव, संसदीय सचिव व तखतपुर विधायक रश्मि सिंह, योग आयोग के सदस्य रवींद्र सिंह, मछुआ बोर्ड के अध्यक्ष राजेंद्र धींवर, जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान, अपेक्स बैंक के अध्यक्ष बैजनाथ चंद्राकर, निगम सभापति शेख नजीरुद्दीन, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर के अध्यक्ष प्रमोद नायक, निगम के नेता प्रतिपक्ष अशोक विधानी शामिल हैं।

कांग्रेस की गुटीय रानीति, भाजपाइयों को मौका
पूरा मामला कांग्रेस की गुटीय राजनीति से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसका फायदा भाजपाइयों को मिल रहा है। वे इसे लेकर कांग्रेसियों को परंपरा से छेड़छाड़ को लेकर आरोप लगा रहे हैं। एक फायदा ये कि दो भाजपाइयाें को भी अतिथि बनने का मौका भी मिल गया है। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष व सांसद अरुण साव और निगम के नेता प्रतिपक्ष अशोक विधानी अतिथि के रूप में आमंत्रित हो रहे हैं। जबकि पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता तो इन्हें अतिथि नहीं बनाने पर भी कोई विवाद की स्थिति नहीं बनती।




































