RAIPUR. हाल ही में मनोनीत विश्वविद्यालय की कार्य परिषद के सदस्यों ने कुलपति को एक पत्र लिखकर सनसनी फैला दी है। पत्र के तथ्य और शब्द चर्चा का विषय बन गए हैं। बता दें कि सरकार ने दो खांटी पत्रकारों को कुछ दिनों पूर्व ही विश्वविद्यालय की कार्य परिषद का सदस्य बनाया है। मज़े की बात ये है कि कुलपति को लिखे इस पत्र में निशाने पर कुलपति ही हैं।
प्रदेश के एकमात्र पत्रकारिता के विश्विद्यालय कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर की कार्यपरिषद में कुछ दिनों पूर्व राजकुमार सोनी और आवेश तिवारी को सदस्य नियुक्त किया गया है। इनमें से राजकुमार सोनी ने विश्वविद्यालय की कमियां गिनाते हुए एक पत्र कुलपति बलदेव भाई शर्मा के नाम लिखा है। बस यही पत्र चर्चा का विषय बन गया है।
विश्वविद्यालय का दृश्य भूतिया हवेली जैसा
पत्र में लिखा गया है कि विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार से अंदर घुसते ही ऐसा लगता है मानो खतरनाक फ़िल्में बनाने वाले रामसे ब्रदर्स की किसी पुरानी हवेली में आ गए हों। प्रवेश द्वार पर ही सूखते अधोवस्त्र और सूखी कटीली झाड़ियां अंदर जाने वालों को ख़राब अनुभव कराती हैं। विश्वविद्यालय साफ़-सुथरा होना चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है इससे साफ़-सुथरे तो प्रदेश में संचालित आत्मानांद स्कूल हैं।
विभागाध्यक्ष नहीं लेते कक्षाएं
पत्र में आगे लिखा गया है कि विश्वविद्यालय में नियमित शिक्षकों की कमी है। इससे यहां के पढ़ाई के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है। विश्वविद्यालय प्रबंधन की स्थिति अत्यंत दयनीय है। जो भी प्रध्यापक अपने-अपने विभाग के विभागाध्यक्ष हैं वो बिना छुट्टी लिए कई दिन गायब रहते हैं। एक भी कक्षा नहीं लेते हैं। पढ़ाई का सारा जिम्मा अतिथि प्राध्यापकों पर है। उच्च शिक्षा विभाग के आदेश के बाद भी अतिथि प्राध्यापकों को कम वेतन दिया जा रहा है। वह भी समय पर नहीं दिया जा रहा है।
विश्विद्यालय में भ्रष्टाचार का भी जिक्र
पत्र में लिखा गया है कि 2015 में विश्वविद्यालय को रूसा के अन्तर्गत 20 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। इसमें से 7 करोड़ नवीन निर्माण, 7 करोड़ रेनोवेशन और 6 करोड़ उपकरण खरीदी में खर्च किए जाने थे। लेकिन विश्वविद्यालय ने और भी बेहद जरूरी बातों को ध्यान ना देते हुए नवीन निर्माण के नाम पर 700 सीटर ऑडिटोरियम बनाने का प्रस्ताव पास कर दिया। जो अब तक बन भी नहीं पाया है और उससे पहले ही खंडहर की शक्ल ले चुका है। रूसा की 7 करोड़ राशि विश्वविद्यालय ने जानबूझकर बर्बाद कर दी। 6 करोड़ रुपए की राशि तो बिना किसी विभागाध्यक्ष से परामर्श लिए ही महंगे उपकरण खरीदने में लगा दी। जिसे विभागाध्यक्षों ने स्वीकार करने तक से मना कर दिया।
पीएचडी परीक्षा की निष्पक्षता पर सवाल
पत्र में लिखा गया है कि पहली बार ऐसा हुआ होगा कि किसी भी पीएचडी की परीक्षा में कोई एक व्यक्ति द्वारा प्रश्न पत्र सेट करने से लेकर, परीक्षा आयोजित करना, कॉपी जंचवाना और बाद में परीक्षा परिणाम घोषित करके उनका पंजीयन कर उन्हें पीएचडी करवाने का कार्य कुछ लोगों के जरिये किया गया। इतनी सुविधा मिलने पर तो कोई भी व्यक्ति अपने मानचाहों को सीट आसानी से दे सकता है।
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