तीरंदाज, इंदौर। 12 अगस्त 2022 को भाद्रपद मास का प्रारंभ हो गया है। भाद्रपद मास विशेष मास माना गया है, जिसमें कृष्ण जन्म एवं गणेश चतुर्थी जैसे विशेष पर्व आते हैं। 19 अगस्त 2022 को भगवान कृष्ण जन्माष्टमी पूरे भारतवर्ष में मनाई जाएगी। इस जन्माष्टमी पर विशेष संयोग बन रहा है, जो सुख, समृद्धि एवं भगवान श्री कृष्ण के पूजन से धन-धान्य से परिपूर्ण करने वाला है। इस दिन ध्रुव और वृद्धि योग बनेगा।
18 अगस्त की रात 8:42 तक वृद्धि योग रहेगा। इसके बाद ध्रुव योग शुरू होगा, जो 19 अगस्त को रात 8 बजकर 59 मिनट तक रहने वाला है। रोहिणी नक्षत्र 19 अगस्त की रात 01 बजकर 52 पर प्रारंभ होगा। कहा जाता है इस दिन विष्णु स्वरूप श्री कृष्ण का पूजन करने मात्र से जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। गृहक्लेश, बाधा तथा व्यापार व्यवसाय में आ रही बाधाओं का नाश होता है।
तिथि को लेकर मतभेद
रक्षाबंधन की तरह ही इस बार जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भी भेद है। कुछ जनमानस 18 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे। यह पर्व 19 अगस्त 2022 को ही मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार यदि सप्तमी तिथि अधिक हो, तो अष्टमी तिथि का अस्तित्व उस दिन न के बराबर होता है। इसलिए नवमी तिथि को उपवास करना एवं भगवान का पूजन करना शुभ होता है।
स्मार्त लोग अर्धरात्रि का स्पर्श होने पर, रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं। वैष्णव लोग सप्तमी का किंचिन मात्र भी स्पर्श होने पर द्वितीय दिवस को ही उपवास करना मानते हैं। निंबार्क संप्रदाय में विशेष तौर पर अर्धरात्रि से यदि कुछ पल भी सप्तमी अधिक हो, तो भी अष्टमी को न करके नवमी में ही उपवास करते हैं। शेष वैष्णव संप्रदाय में उदय तिथि, अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता प्राप्त है।
कहा गया है – पुर्वाविद्घाष्टमी या तु उदये नवमीदिने।
मुहूर्तमपि संयुक्ता संपूर्णा सा$ष्टमी भवेत्।।
कलाकष्ठा मुहूर्त: अपि यदा कृष्णाष्टमी तिथि:।
नवम्यां सैव ग्राह्या स्यात सप्तमी संयुता नहि।।
इसलिए हमें इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 19 अगस्त 2022 को मनाना चाहिए, जिसमें अष्टमी तिथि की पूर्णता एवं नवमी तिथि भी हो तथा उपवास के लिए उदयात तिथि को ग्रहण भी किया जा सके। जबकि कृष्णा जन्माष्टमी पर निशीथ व्यापनी तिथि को ही लिया जाता है। परंतु 18 अगस्त को सप्तमी तिथि की अधिकता होने से यह पर्व 19 अगस्त 2022 को ही मनाया जाएगा।
व्रत की तैयारी
जन्माष्टमी के दिन पूरे दिन व्रत रखने का विधान है। इसलिए प्रातः काल उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। केले के खंभे, आम अथवा अशोक के पल्लवादि से घर का द्वार सजाना चाहिए। दरवाजे पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करना चाहिए।
षोडशोपचार पूजन करें
रात्रि में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम जी की मूर्ति को विधि पूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र से पूजन कर तथा वस्त्र अलंकार आदी से सुसज्जित करके भगवान को सुंदर सजे हुए हिंडोले लेते हुए झूले में प्रतिष्ठित करना चाहिए। फिर उन्हें धूप दीप और अन्न रहित भोग निवेदित करना चाहिए।
प्रसूति के समय सेवन होने वाले सुस्वादु मिष्ठान, जायकेदार नमकीन पदार्थों एवं उस समय उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के फल पुष्प और नारियल, छुआरे, अनार, बिजोरा, पंजीरी, नारियल के साथ-साथ माखन और मिश्री भी अर्पण करना चाहिए। इस दिन विशेष रूप से माखन मिश्री का भोग भक्तगण भगवान को लगा कर प्रसन्न होते है, उसके पश्चात भगवान की आरती करनी चाहिए। तभी अपने व्रत का पारण करना चाहिए।
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