तीरंदाज, इंदौर। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को नूतन वर्ष अर्थात नव संवत्सर प्रारम्भ होता है। नव संवत्सर 2079 का आरंभ इस बार दो अप्रैल से हो रहा है। इसी दिन से नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। वहीं, महाराष्ट्र में गुडी पडवा भी इसी दिन मनाया जाता है। साल के दो गुप्त और दो नवरात्रि में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। कोई भी काम शुरू करने के में नवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्रि में नौ दिन माता की पूजा अर्चना हवन इत्यादि की जाती है।
दो अप्रैल को होगी घट स्थापना
अश्विनी नवरात्र के बाद सबसे ज्यादा महत्व चैत्र नवरात्र का होता है। चैत्र नवरात्र इस बार 2 अप्रैल शनिवार से शुरू होगा और 10 अप्रैल रविवार तक रहेगा। नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। नवरात्रि पर घट-स्थापना 2 अप्रैल को प्रतिपदा के दिन होगी।
शुभ रहेगा यह संवतसर
मान्यता है कि सृष्टि रचयिता परम पिता ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन ज्योतिष दिवस मनाया जाता है। अतः इसी को आधार मानकर काल गणना का सिद्धांत चलता है। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को जो दिन या वार पड़ता है, वही उस संवत्सर का राजा होता है और सूर्य की मेष संक्रांति जिस दिन होती है उस दिन से संवत्सर के मंत्री पद का निर्धारण होता है।
इस नव संवत्सर में राजा का पद शनिदेव को एवं मंत्री का पद देव गुरु बृहस्पति को प्राप्त हो रहा है। यह संवत्सर शुभ फलप्रदायक होगा। जनता एवं समाज में सौम्यता, स्थिरता बनी रहेगी, राजनीतिक दलों सहित समस्त संस्थाओं द्वारा किया गया कार्य-योजना जनता के हित में होगा। नल नामक इस संवत्सर के राजा शनिदेव है, अतः आम जन मानस के सहयोगी संवत्सर के रूप इस संवत्सर की गणना की जाएगी। शासन तंत्र अपना कार्य कर पाने में सफल होगा और धार्मिक क्रिया कलापों में सामान्य वृद्धि होगी।
घट स्थापना मुहूर्त
शुभ प्रातः – 07:53 से 09:25 मिनट तक।
अभिजीत प्रातः – 11:55 से 12:47 मिनट तक।
चर दोपहर – 12:30 से 02:02 मिनट तक।
लाभ दोपहर – 02:03 से 03:36 मिनट तक।
अमृत दोपहर – 03:37 से 05:09 मिनट तक।
नौ दिन इन रूपों की होगी पूजा
2 अप्रैल, प्रथम नवरात्र को देवी के शैलपुत्री रूप का पूजन किया जाएगा।
3 अप्रैल, नवरात्र की द्वितीया तिथि को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी।
4 अप्रैल, तृतीया तिथि को देवी दुर्गा के चंद्रघंटा रूप की आराधना होगी।
5 अप्रैल, चतुर्थी तिथि को मां भगवती के देवी कूष्मांडा स्वरूप की उपासना होगी।
6 अप्रैल, पंचमी तिथि को कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
7 अप्रैल, षष्ठी तिथि को मां कात्यायनी की पूजा की जाती है।
8 अप्रैल, नवरात्र पर्व की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का विधान है।
9 अप्रैल, अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं।
10 नवरात्र पर्व की नवमी तिथि को देवी सिद्धदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।