दुर्ग। गिद्धराज जटायु के वंशज गिद्धों के लिए अब दुर्ग जिले में वल्चर रेस्टारेंट खोलने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए फारेस्ट और रेवेन्यू की संयुक्त टीम ने जगह चिन्हांकन के लिए सर्वे किया है। खासबात यह है कि इस जगह पर विलुप्त प्राय इस प्रजाति के गिद्धों को देखा गया है। इसे लेकर कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने कहा है कि वल्चर रेस्टारेंट बनने से विलुप्तप्राय इस प्रजाति के संरक्षण संभव हो पाएगा।
बता दें कि दुर्ग जिले के धमधा ब्लाक में गिद्धों की इजीप्शियन प्रजाति अर्थात इजीप्शियन वल्चर को देखा गया है। ये बड़े पेड़ों में घोंसला बनाकर रह रहे हैं। इनकी प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह अच्छा अवसर है। कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे और डीएफओ धम्मशील गणवीर ने आज इनकी संरक्षण की संभावनाओं पर विचार किया और उन क्षेत्रों में जहां इनकी बसाहट सबसे अधिक पाई गई है वहां पर इनके कंजर्वेशन के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए जगह चिन्हांकित करने का निर्णय लिया।
कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने बताया कि वल्चर रेस्त्रां शुरू होने से इन विलुप्तप्राय गिद्धों को भरपूर भोजन मिलेगा। हमारा प्रयास होगा कि यहां इन गिद्धों का सरंक्षण हो। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए स्थल निरीक्षण का निर्देश दिया गया है। जल्द ही इसे लेकर योजना बनाकर काम शुरू किया जाएगा।
इस संबंध में जानकारी देते हुए डीएफओ गणवीर ने बताया कि यह खुशी की बात है कि इजीप्शियन वल्चर की प्रजाति हमारे यहां देखी जा रही है। यह दुर्लभ प्रजाति है और इसके संरक्षण की जरूरत है। इसके लिए एक खास क्षेत्र बना दिया जाएगा जो एक तरह से वल्चर रेस्टारेंट की तरह होगा। गिद्ध मृतभक्षी होते हैं। मृतक जानवरों की लाशें यहीं लाई जाएंगी। इस क्षेत्र में ऐसे पौधे लगाये जाएंगे जो गिद्धों की बसाहट के अनुकूल होंगे। गिद्ध पीपल जैसे ऊंचे पेड़ों में बसाहट बनाते हैं।
डीएफओ गणवीर ने बताया कि कंजर्वेशन वाले क्षेत्र में इस तरह की सारी सुविधाओं का विकास होगा जो गिद्धों की बसाहट के लिए उपयोगी होगी। उन्होंने बताया कि भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां हैं, इनमें से इजीप्शियन वल्चर एक प्रजाति है। यह छोटे आकार के गिद्ध होते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में पहले बड़ी संख्या में गिद्ध पाये जाते थे लेकिन दशक भर से पहले इनमें तेजी से गिरावट आई।
इस वजह से विलुप्त हो रही है प्रजाति
डीएफओ धम्मशील गणवीर ने बताया कि इन गिद्धों के विलुप्त होने का कारण था डाइक्लोफिनाक औषधि है। यह औषधि मवेशियों को दी जाती थी। मवेशियों के मरने के बाद जब गिद्ध इनके गुर्दे खाते थे तो यह औषधि भी उनके पेट में चली जाती थीऔर जानलेवा होती थी। देश भर में इस औषधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन गिद्धों की प्रजाति तब तक काफी कम हो चुकी थी।
डीएफओ गनवीर ने बताया इन गिद्धों की गर्दन में सफेद बाल होते हैं। आकार थोड़ा छोटा होता है। ब्रीडिंग के वक्त इनकी गर्दन थोड़ी सी नारंगी हो जाती है।
हिमालय से उड़कर रामेश्वरम में चढ़ाते हैं जल
पक्षी विशेषज्ञ अनुभव शर्मा ने बताया कि भारत में पाये जाने वाले इजीप्शियन वल्चर दो प्रकार के होते हैं। एक तो स्थायी रूप से रहने वाले और दूसरे माइग्रेटरी। भारतीय साहित्य में इनके बारे में दिलचस्प वर्णन है। इजीप्शियन वल्चर संस्कृत साहित्य में शकुंत कहा गया है। अभिज्ञान शाकुंतलम में ऋषि कण्व को शकुंतला ऐसे ही शकुंत पक्षी के वन में प्राप्त हुई थी जिसकी वजह से उन्होंने उसका नामकरण शकुंतला रख दिया।
इसी शकुंतला के बेटे भरत से हमारे देश का नाम भारत पड़ा। माइग्रेटरी शकुंत पक्षी हिमालय से उड़ान भर कर रामेश्वर तक पचते हैं। इनके बारे में अनुश्रुति है कि ये शिव भक्त होते हैं और गंगा जल हिमालय से लेकर रामेश्वरं में भगवान शिव को चढ़ाते हैं।
पाटन के अचानकपुर में भी देखे गए
पक्षी विशेषज्ञ राजु वर्मा ने बताया कि पिछले वर्ष पाटन के अचानकपुर में भी इजीप्शियन वल्चर देखा गया था। उन्होंने बताया कि पाटन के सांकरा और बेलौदी में प्रवासी पक्षियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां लगभग 2 हजार माइग्रेटरी बर्ड स्पॉट किए गए हैं। 2 फरवरी को यहां वर्ल्ड वेटलैंड डे मनाया गया।