तीरंदाज, इंदौर। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व हर साल मनाया जाता है। इस साल यह व्रत और त्योहार 1 मार्च 2022 को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा। शिव भक्त व्रत, रुद्राभिषेक आदि के जरिये देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। वह अपने आप में संपूर्ण हैं और कई रहस्यों को समेटे हैं। इन्हीं में से एक रहस्य है शिव का तीसरा नेत्र।
इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि भगवान शिव के तीसरे नेत्र के बारे में तो सभी ने कई कहानियां सुनी होंगी, लेकिन फिर भी यह एक रहस्य ही लगता है। आइए जानते हैं कि आखिर भगवान शिव की तीसरी आंख से जुड़ा रहस्य क्या है।
दिव्य दृष्टि का प्रतीक है तीसरा नेत्र
ध्यान करते हुए कहा जाता है कि दोनों भौंहों के बीच अपने दिमाग को स्थिर करें। यह आज्ञा चक्र है, जो आपको बहुत शांति देता है साथ ही जीवन के कई आध्यात्मिक रहस्यों के संसार को आपके लिए खोल देता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव का तीसरा नेत्र दिव्य दृष्टि है, जिससे कुछ भी छिपा नहीं रह सकता। भोलेनाथ का तीसरा नेत्र ज्ञान नेत्र के समान है, जो आत्मज्ञान की अनुभूति कराता है। इस तीसरे नेत्र से भगवान शिव तीनों लोकों की गतिविधियों पर भी नजर रखते हैं। शिव का तीसरा नेत्र हर चीज की अनंत गहराई को जान लेता है।
शक्ति का केंद्र है तीसरा नेत्र
दरअसल भगवान शिव का तीसरा नेत्र भी उनकी शक्ति का केंद्र है। इससे उनकी छवि काफी प्रभावशाली होती है। जैसे ही भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल जाएगा, पूरी सृष्टि भस्म हो जाएगी।
तीसरे नेत्र के संदर्भ में कथा
भगवान शिव के तीसरे नेत्र के संदर्भ में कई कथाओं का जिक्र धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। ऐसी ही एक कहानी में बताया गया है कि जब भगवान शिव अपने ध्यान में लीन थे, तब माता पार्वती ने अपनी दोनों हथेलियों से उनकी आंखों को ढंक लिया। तब पूरी सृष्टि में अंधेरा छा गया था। उस समय महादेव ने अपने तीसरे नेत्र से इतना प्रकाश डाला कि पूरी पृथ्वी जलने लगी। तब माता पार्वती ने तुरंत अपनी हथेलियों को हटा दिया और सब कुछ सामान्य हो गया। इस कहानी से यह भी जानकारी मिलती है कि भगवान शिव की एक आंख सूर्य के समान और दूसरी चंद्रमा के समान है।
तीसरे नेत्री से जुड़ी अन्य कथा
एक बार दक्ष प्रजापति ने एक भव्य हवन का आयोजन किया और उस हवन में माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था। शिवजी ने माता सती को भी वहां जाने से मना किया, लेकिन वह नहीं मानीं और पिता के घर चली गईं। वहां, दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया। माता सती शिव को किए गए अपमान को सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। इस घटना से भोलेनाथ इतने टूट गए कि वे वर्षों तक घोर तपस्या करते रहे।
कालांतर में माता सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में पुनः जन्म लिया, लेकिन भगवान शिव अपने ध्यान में इतने लीन थे कि उन्हें कुछ पता ही नहीं चला। ऐसे स्थिति में सभी देवता चाहते थे कि माता पार्वती जल्द से जल्द शिव के साथ एक हो जाएं, लेकिन सभी को कोशिश नाकाम रही। अंत में भगवान कामदेव को मदद के लिए बुलाया। कामदेव ने विभिन्न तरीकों से भगवान शिव का ध्यान तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहे। इसके बाद कामदेव ने एक आम के पेड़ के पीछे से फूल का बाण चला दिया, जो सीधे शिव के हृदय में जाकर लगा, जिनसे उनका हृदय विचलित हो गया।
ध्यान भंग होने से महाकाल इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया।
जब भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ तो भगवान कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से अपने पति को पुनर्जीवित करने की गुहार लगाई, तो शिव ने कहा कि कामदेव द्वापर युग में भगवान कृष्ण के पुत्र के रूप में फिर जन्म लेंगे।