भिलाई। पशुधन के अपशिष्ट से क्या कोई लाखों की कमाई कर सकता है। क्या कोई जगह-जगह पड़े गोबर को इकट्ठा कर आय का साधन बनाकर अपने घर को समृद्ध कर सकता है। साथ ही पशुधन का संरक्षण भी, मगर ये बात सत्य है। ..जी हां ऐसा हो रहा है। वो भी गोधन न्याय योजना से।
छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना से जुड़कर गांव की महिलाओं ने रोजगार का सुलभ माध्यम बना लिया है। इससे गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ें हैं इससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था गतिशील हुई है। यह बहु-उद्देशीय योजना खेती-किसानी को खुली चराई से होने वाले नुकसान की रोकथाम में मददगार साबित हो रहा है। साथ ही पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के प्रति ग्रामीणों को जागरूक करने के साथ ही उनके आय का अतिरिक्त जरिया बन गई है।
गांव के गौठानों में गोधन न्याय योजना के जरिए गोबर की खरीदी और इससे कम्पोस्ट खाद के निर्माण में स्व-सहायता समूह की महिलाओं को रोजगार और आय का नया साधन दे दिया है। महिला समूह गोबर से वर्मी खाद के साथ-साथ अन्य उत्पाद तैयार करने का नित नया प्रयोग कर रही हैं।
लो-कास्ट तकनीक का इस्तेमाल
कबीरधाम जिले के बिरेन्द्र नगर गौठान से जुड़े संस्कार आत्मा महिला स्व-सहायता समूह ने गोबर से वर्मी खाद तैयार करने की लो-कास्ट तकनीक अपनाकर आय में बढ़ोत्तरी की एक नई इबारत लिखी है। समूह की महिलाओं ने लो-कास्ट तकनीक से तैयार कम्पोस्ट खाद और केंचुआ बेचकर 9 लाख 59 हजार 560 रुपए की आय अर्जित की है।
वर्मी कम्पोस्ट के से 4.73 लाख और केंचुआ से 3.50 लाख आय
संस्कार आत्मा महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष हेमलता कौशल बताती हैं कि उनकी समूह से 10 महिलाएं जुड़ी हैं। समूह द्वारा उत्पादित 486 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट के विक्रय से 4 लाख 73 हजार 300 रुपए, 227 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट से एक लाख 36 हजार 260 रुपए तथा 14 क्विंटल केंचुआ बेचकर 3 लाख 50 हजार रुपए इस प्रकार कुल 9 लाख 59 हजार 560 रुपए की आय अर्जित की है।
केवल 10 हजार से काम शुरू
समूह की महिलाओं को आत्मा योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण एवं तकनीकी मार्गदर्शन के साथ ही रिवॉलविंग फंड के रूप में 10 हजार रुपए की राशि उपलब्ध कराई गई। कृषि विभाग के मार्गदर्शन में समूह ने 8 ईंट युक्त अस्थायी लो-कास्ट तकनीक से वर्मी टांका बनाया। प्रत्येक टांके में 40 क्विंटल गोबर का उपयोग कर परत दर परत वेस्ट डी-कम्पोजर का छिड़काव किया। गोबर सड़ने में 11 दिन लगे। इसके बाद टांके में केंचुआ छोड़ा गया। 20 दिनों में वर्मी कम्पोस्ट की प्रथम लेयर तैयार हो गई। कुल 50 से 60 दिनों में ही प्रत्येक वर्मी टांके से 16 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट मिली।
इस तकनीक से श्रम और समय की बचत
उन्होंने बताया कि उनके समूह ने राज्य में सबसे पहले लो-कास्ट तकनीक का उपयोग किया। इससे श्रम और समय की बचत के साथ लाभ भी अधिक हुआ। लो-कास्ट तकनीक से वर्मी टांका और वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की विधि को अन्य गौठानों में भी अपनाया है। यह उनके समूह के लिए गौरव की बात है।
इस आय से खरीदे गहने, फोन
समूह की सचिव बिसन देवी कौशल बताती हैं कि कम्पोस्ट खाद और केंचुआ बेचने से समूह को हुए लाभ से सदस्य महिलाओं ने अपने लिए 3 लाख 10 हजार रुपए मूल्य के सोने का मंगल सूत्र, नेकलेस, झुमका, नथली, चांदी की बिछिया, पायल आदि की खरीदी की है। दो महिलाओं ने 22 हजार रुपए का स्मार्ट फोन भी खरीदा है।
घर में सुविधाएं भी इसी की आय से
समूह की महिलाएं बच्चों की पढ़ाई, घर के निर्माण एवं मरम्मत, तीज-त्यौहार एवं विवाह कार्य में भी राशि खर्च करने में सक्षम हुई हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना की तारीफ करते हुए समूह की सदस्य महेश्वरी, सुमति, टिकेश्वरी, सीता देवी, सती बाई, राधा, वंदना एवं रेवती कौशल का कहना है कि इससे उन्हें स्वावलंबन और सम्मान मिला है।
(TNS)