भिलाई। “इंटरनेट के युग में अपने व्याकरण और वाक्य संरचना के कारण विश्वभाषा संस्कृत कम्प्यूटर के सर्वाधिक अनुकूल भाषा है। ‘इसरो’ ने भी इस तथ्य को मान्यता दी है। सूर्य की स्थिरता, पृथ्वी द्वारा उसकी परिक्रमा और दिन-रात होने का उल्लेख पूरे विश्व के समक्ष भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने किया। गैलीलियो और कापरनिकस उनके बाद आये।
“ग्लोबल संस्कृत फ़ोरम राजस्थान ब्रांच द्वारा “संस्कृत वाङ्मय में वैज्ञानिक चिन्तन” विषय पर आयोजित अन्तर्जालीय संगोष्ठी में उक्त विचार इस्पात नगरी के चिन्तक, विचारक एवं संस्कृत आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने संगोष्ठी में आगे जानकारी दी कि दशमलव का शोध भी हमारे विज्ञानर्षि आर्यभट्ट ने किया। वैदिकर्षि हीट, लाइट, इलैक्ट्रिसिटी और इनर्जी आदि की परिभाषा, व्याख्या और प्रयोगों का उल्लेख सबसे पहले करते हैं। प्राण-अपान या इन्द्र-विष्णु आज विज्ञान में अभिकेन्द्रीय बल और अपकेन्द्रीय बल कहलाते हैं। हमारे भास्कराचार्य जी सर आइज़क न्यूटन से 600 वर्ष पूर्व ही गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त की जानकारी दुनिया को दे चुके हैं।
संगोष्ठी के मुख्यअतिथि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नयी दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास बरखेड़ी थे। वहीं अध्यक्षता कर रहे जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के प्रोफेसर डॉ. राजधर मिश्र ने भी अच्छा मार्गदर्शन दिया। बेवीनार संयोजक डॉ. भूपेन्द्र राठौर ने संचालन किया।
मुख्य वक्ता साहित्याचार्य डॉ.महेशचन्द्र शर्मा ने वैशेषिक दर्शनाचार्य प्रशस्तपादाचार्य के सापेक्षिकता सिद्धान्त एवं परमाणु स्वरूप पर भी प्रकाश डाला। डॉ. शर्मा ने बताया कि समय-समय पर केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नयी दिल्ली के वैज्ञानिकों के साथ वैदिक विद्वानों को एक मंच पर आह्वान करते हुए अनेक संवाद भी कराए। जहां उपरोक्त बिन्दुओं पर सभी सहमत हुए।
इस इंटरनेशनल बेवीनार में नवनालन्दा महाविहार कैम्पस के डॉ. नीलाभ तिवारी, गोरखपुर के डॉ. अखिलेश त्रिपाठी, डॉ. जुगल किशोर शर्मा, डॉ. मीनू मिश्रा एवं डॉ. बीबी ठाकुर आदि ने भी सक्रिय भागीदारी निभाई।
मुख्य अतिथि डॉ. बरखेड़ी एवं अध्यक्ष प्रो. मिश्र ने छत्तीसगढ़ से सम्मिलित मुख्यवक्ता आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा के महत्त्वपूर्ण वक्तव्य की सराहना की। ज्ञातव्य है कि डॉ. शर्मा की दस पुस्तकें प्रकाशित हैं। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 500 से अधिक लेख, आलेख, शोधालेख, ललितलेख और समीक्षालेख भी प्रकाशित हैं।
(TNS)