रायपुर। प्रदेश की महिला स्व सहायता समूह के लिए अच्छी खबर सामने आई है। खबर ये है कि आगामी कुछ महीने वे ही रेडी टू ईट फूड तैयार करेंगी। इसके लिए राज्य शासन ने आदेश जारी कर दिया है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से जारी आदेश के मुताबिक अप्रैल तक महिला स्व सहायता समूह ही रेडी टू ईट फ़ूड बनाएंगी। बता दें कि राज्य शासन द्वारा पूर्व में जारी आदेश को संशोधित किया गया है।
आदेश के मुताबिक जब तक नवीन व्यवस्था लागू नहीं हो जाती है तब तक पूर्व व्यवस्था यथावत रहेगी। बता दें कि उच्च न्यायालय बिलासपुर में वर्तमान में विचाराधीन समस्त याचिकाओं में समय-समय पर जारी निर्देश के अधीन रहेगा।
इससे जुड़े हैं 3 लाख परिवार
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में चल रही रेडी टू ईट योजना से महिला स्व सहायता समूहों से जिम्मेदारी छीन ली गई है। पिछले आदेश अनुसार वे रेडी टू ईट तैयार नहीं करेंगी। इसके कारण प्रदेश के लगभग 30 हजार स्व सहायता समूह की 3 लाख से ज्यादा महिलाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। इसके बाद से सरकार के निर्णय पर महिलाओं का गुस्सा फूट पड़ा है। विरोध में सैकड़ों की संख्या में समूह की महिलाओं ने प्रदर्शन किया।
बता दें कि पूरक पोषण आहार व्यवस्था के तहत टेक होम राशन में रेडी टू ईट फूड निर्माण महिला स्व सहायता समूह कर रहे थे। वहीं इसके वितरण की जिम्मेदारी भी संभालती थीं। इस योजना में आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों से लेकर किशोरियों और शिशुवती महिलाओं को तैयार भोजन दिया जाता है। अब इस योजना को सेंट्रलाइज किया जा रहा है। इसके बाद राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम द्वारा स्थापित इकाइयों के माध्यम इसका निर्माण और वितरण किया जाने का निर्णय लिया गया था।
स्वचलित मशीनों से होगा निर्माण
पुराने निर्णय अनुसार आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से महिलाओं और बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए वितरित किए जा रहे रेडी टू ईट पोषण आहार की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिए केन्द्रीयकृत व्यवस्था अपनाई जाएगी। इस व्यवस्था में स्वचलित मशीनों के जरिए रेडी टू ईट पोषण आहार का उत्पादन किया जाएगा।
प्रदेश में 2009 से संचालित है योजना
राज्य में यह योजना साल 2009 से संचालित है। इसके लिए 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट तय किया गया है। जिसे महिला बाल विकास विभाग के जरिए आंगनवाड़ी केंद्रों के बच्चों के साथ ही अन्य लोगों को दिए जाने वाले रेडी-टू ईट फूड पर खर्च किया जाता है। इसका बड़ा हिस्सा आंगनवाड़ी केंद्रों में आने वाले बच्चों पर जाता है।
(TNS)