रायपुर। कई तरह की परेशानियों(problems) से जूझ रहे 58 गांवों के आदिवासी(tribal) लोग नारायणपुर जिले (nairapur district) में शामिल होना चाहते हैं। इसके लिए वे लगभग 14 साल से मांग कर रहे हैं। शासन-प्रशासन (Government administration) को परेशानियों का पुलिंदा सौंपते-सौंपते थक चुके हजारों लोग इस बार प्रदेश के मुखिया (head of state) से मिलने पैदल(foot) ही राजधानी(Capital) पहुंचे हैं।
2007 से संघर्ष
इस बार बड़ी संख्या में 58 गांवों के आदिवासी रहवासी ठान कर घर से पैदल ही निकले हैं कि सरकार से मांग मनवाकर ही रहेंगे। इनकी संख्या लगभग 3 हजार से अधिक है, जो कांकेर जिले से रायपुर तक का सफल पैदल तय किए। इनकी मांग है कि कांकेर जिला अंतर्गत अंतागढ़ तहसील के 58 गांव, 13 पंचायत, 40 ग्रामसभा को नारायणपुर जिले में शामिल किया जाए। कांकेर जिला मुख्यालय पहुंचने के लिए एक से दो दिनों का समय बर्बाद करना होता है। इस मांग को लेकर आदिवासी 2007 से लड़ रहे हैं।
नारायपुर 20 किमी और कांकेर जिला मुख्यालय 150 किमी
ग्रामीणों का कहना है कि हमें शासकीय कामों के लिए 150 किलोमीटर का सफर तय कर कांकेर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। आने-जाने में 1 से 2 दिन का समय लगता है। इस इलाके में पक्की सड़कें भी नहीं हैं। ऐसे में कई किलोमीटर पैदल सफर तय करते हैं। वहीं नारायणपुर जिला मुख्यालय की दूरी महज 20 किलोमीटर ही है। स्वास्थ्य सुविधाएं हो या फिर शिक्षा, नारायणपुर जिले से ही लेते हैं। बताया लेकिन शासकीय कार्यों के लिए मजबूरन कांकेर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। यही वजह है कि 58 गांवों को नारायणपुर में शामिल करने की मांग की जा रही है।
2007 से कर रहे हैं मांग
ग्रामीणों का कहना है कि, कोलर इलाके को नारायणपुर जिले में शामिल करने की यह मांग सालों पुरानी है। साल 2007 से हम आंदोलन कर रहे हैं। ऐसा करते लगभग 13 से 14 साल हो गए, लेकिन जिम्मेदारों की आंख नहीं खुली। छत्तीसगढ़ में अब सरकार भी बदल गई है, लेकिन हमारी मांगें पूरी नहीं हुई। यदि अब भी हमारी परेशानियां दूर नहीं की गई तो आंदोलन जारी रखा जाएगा।
(TNS)