नारायणपुर। बस्तर के आदिवासी इन दिनों एकजुट हो रहे हैं। हाथ में तीर-धनुष हैं। चेहरे पर आक्रोश है, और शब्दों में नाराजगी। मामला नेशनल हाइवे के विस्तार से जुड़ा है। नेशनल हाइवे के सर्वे में अबूझमाड़ के ताडोनार का बांस का जंगल आ रहा है। बांस का यह जंगल आदिवासियों के लिए देवस्थल है। आदिवासियों की आस्था यहां 12 पीढ़ियों से है। जंगल पर संकट देख दर्जन भर से ज्यादा गांवों के आदिवासियों ने बैठक कर फैसला किया कि बिना उनकी अनुमति के किसी को जंगल में पैर नहीं रखने देंगे।
आदिवासियों का मानना है कि बांस के जंगल की कटाई से कुल देवता नाराज हो जाएंगे और सभी ग्रामीणों को इसका खामियाजा भुगतना होगा। इसी जंगल के बांस पर आदिवासी अपने धार्मिक आयोजन जात्रा में देव ध्वज लगाते हैं। इस मामले को लेकर पोकानार, हिकपाड़, मोहंदी, नेडनार, कुतुल, धुरबेड़ा, इरकभट्टी, कलमानार, मुरनार, नेलनार आदि दर्जन भर गांवों के आदिवासियों ने बैठक कर जंगल बचाने का संकल्प लिया गया। बैठक में निर्णय लिया गया कि गांव के गायता, पुजारी, मांझी, मुखिया, पंच और सरपंच की अनुमति के बिना देवस्थल में किसी को पैर नहीं रखने दिया जाएगा। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार को हमारी संस्कृति का ध्यान रखना चाहिए। संस्कृति से खिलवाड़ करने पर आंदोलन की भी चेतावनी दी गई। ग्रामीणों ने सड़क से पहले डॉक्टर और टीचरों की व्यवस्था करने की भी मांग की।
(TNS)