BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आज दो बड़े मामलों पर अपना फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने टीचर और हेडमास्टरों के प्रमोशन को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला देते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। वहीं दूसरे फैसले में हाईकोर्ट ने शिक्षण पदों के लिए 100% महिला आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, कि शासकीय नर्सिंग कॉलेज में डेमोंस्ट्रेटर, प्रोफेसर पद के पक्ष में 100% प्रतिशत महिला आरक्षण प्रदान करना “असंवैधानिक” है।
शासन के पक्ष में आदेश जारी होने के बाद अब टीचरों के प्रमोशन का रास्ता साफ हो गया है। अब प्राचार्य के पदों पर पदोन्नति के लिए रेगुलर और एलबी दोनों ही संवर्ग को मौका दिया जाएगा। हाईकोर्ट के फैसले के बाद शिक्षकों में जश्न का माहौल है, होली के दूसरे दिन ही आए इस फैसले के बाद शिक्षकों ने एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाकर बधाई दी। ज्ञात हो, कि सरकार ने शिक्षक एवं भर्ती पदोन्नति नियम 2019 में शिक्षक एलबी संवर्ग को पदोन्नति के लिए 5 वर्ष का स्कूल शिक्षा विभाग में अनुभव का प्रावधान रखा, कुछ दिनों बाद शासन ने कैबिनेट बैठक कर इसमें संशोधन करते हुए अनुभव लिमिट को 3 वर्ष कर दिया। इसके बाद प्रदेश भर में पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। इसके खिलाफ कुछ नियमित शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, आज हाईकोर्ट के द्वारा उस याचिका को खारिज कर दिया गया है।
वहीं, एक अन्य मामले में छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग ने दिसम्बर 2021 में सहायक प्राध्यापक नर्सिंग और डेमोस्ट्रेटर नर्सिंग के 91 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें राजपत्र में जून 2013 में चिकित्सा शिक्षा (राजपत्रित) सेवा भर्ती नियम के अनुसार इन पदों के लिए सिर्फ महिलाओं को ही पात्र माना गया था। इसके लिए जारी विज्ञापन में भी सिर्फ महिलाओं को ही भर्ती करने का उल्लेख किया गया। वहीं PSC की भर्ती प्रक्रिया और भर्ती नियम 2013 को चुनौती देते हुए कोरिया के ऐल्युस खलखो, आदित्य सिंह ने अधिवक्ता घनश्याम कश्यप और नेल्शन पन्ना के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में इसे आरक्षण नियमों के विपरीत बताते हुए कहा गया, कि जिन पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया, उसकी पढ़ाई पुरुष वर्ग के प्रतियोगी भी करते हैं। लेकिन, इन पदों पर उन्हें नियुक्ति के लिए वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 में दिए गए आरक्षण नियमों का उल्लंघन है। इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने नर्सिंग कालेजों में भर्ती पर रोक लगा दी थी।