KOLKATA. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने संकेत दिया है कि वे कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से समान दूरी बनाए रखेंगे. साथ ही भगवा विरोधी तीसरे मोर्चे को एकजुट करने का प्रयास करेंगे. इस तरह देश की सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस को विपक्षी दलों का बिग बॉस की भूमिका निभाने का कोई मौका नहीं मिलेगा. केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा विपक्षी दलों के खिलाफ सरकारी केंद्रीय एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग का विरोध टीएमसी और सपा को साथ लाने का काम कर रहा है. इस मसले पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने के बाद अखिलेश यादव ने कोलकाता में ममता बनर्जी के घर पर उनसे मुलाकात की.
सपा प्रमुख ने बाद में 30 मिनट की मुलाकात की दो तस्वीरें ट्वीट कीं. उन्होंने लिखा, ‘आज कोलकाता में सबकी चहेती दीदी से मुलाकात हुई.’ अखिलेश ने कहा कि उनकी पार्टी को किस पार्टी के साथ गठबंधन करना है उसका फैसला राजनीतिक वास्तविकताओं पर आधारित है. बंगाल में, हम ममता दीदी के साथ हैं … क्या यूपी में कांग्रेस की कोई हिस्सेदारी है? सपा प्रमुख शनिवार से शुरू हो रही अपनी पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए कोलकाता में हैं. उन्होंने टीएमसी सुप्रीमो से मुलाकात के दौरान 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में भाजपा को बड़ी हार देने के लिए ममता बनर्जी की सराहना की.
तीसरे मोर्चे पर बात शुरू करने की कोशिश कर रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को भी झटका लगा हैं. सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी 23 मार्च को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिलेंगी. फिर इस महीने के अंत में या अप्रैल की शुरुआत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बात करेंगी. तृणमूल सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा, ‘पार्टी कई क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत करने की प्रक्रिया में है.’ इसके साथ ही वह यह जोड़ना भी नहीं भूले, ‘यह कहना जल्दबाजी होगी कि तीसरा मोर्चा तुरंत बन रहा है.’
कांग्रेस का तीसरे मोर्चे का हिस्सा नहीं होने पर उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस का विपक्ष का बिग बॉस बनने के किसी भी प्रयास का विरोध किया जाएगा. तृणमूल कांग्रेस भारत में दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और हम एक ताकत हैं.’ जाहिर है ममता बनर्जी और अखिलेश यादव के हालिया रुख से इतना तो तय हो गया है कि 2024 लोकसभा चुनाव में विपक्ष भगवा पार्टी के खिलाफ एक होकर चुनाव नहीं लड़ सकेगा. इसकी एक बड़ी वजह सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं, जो उन्हें एक नहीं होने दे रही. मजबूत क्षेत्रीय दलों का यह गठबंधन बीजेपी को कितनी टक्कर दे सकेगा इसका पता तो चुनाव बाद परिणाम देखकर ही लगेगा.