RAIPUR. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 103 पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों का ऐलान कर दिया गया है। इसमें छत्तीसगढ़ के तीन कलाकारों ऊषा बारले, अरुण कुमार मंडावी और डोमार सिंह कुंवर को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। इसके अलावा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और ओआरएस के खोजकर्ता डॉ. दिलीप महलानाबिस को मरणोपरांत देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया है।
वहीं, तबला वादक जाकिर हुसैन, आर्किटेक्ट बालकृष्ण दोषी और भारतीय मूल के अमेरिकी मेथेमेटिशियन श्रीनिवास वर्धन को भी पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। कुमार मंगलम बिड़ला और सुधा मूर्ति समेत 9 हस्तियों को पद्म भूषण से नवाजा गया है। 91 हस्तियों को पद्मश्री सम्मान दिया गया है।
ऊषा बारले देश-दुनिया में दे चुकी हैं पंडवानी की प्रस्तुति
2 मई 1968 में भिलाई में जन्मी ऊषा बारले पंडवानी विधा में विख्यात हैं। वे विख्यात कलाकार तथा पद्मश्री तीजनबाई के साथ रही हैं। उन्होंने सात वर्ष की उम्र में गुरू मेहत्तरदास बघेलजी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली। उन्होंने अपना पहला कार्यक्रम भिलाई खुर्सीपार में दिया। ऊषा न्यूयार्क, लंदन, जपान समेत कई देशों में पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं। स्थानीय स्तर पर गिरौदपुरी तपोभूमि में 6 बार सम्मानित हुई। बीएसपी भी उन्हें दाऊ महासिंह चंद्राकर अवार्ड से सम्मानित कर चुका है। वे भिलाई सेक्टर में पंडवानी की निशुल्क प्रशिक्षण भी देती हैं।
युवाओं को बंदूक छोड़कर कला के क्षेत्र में ला रहे अजय
कांकेर जिले के गोविंदपुर गांव के रहने वाले अजय कुमार मंडावी काष्ठ कलाकार हैं। विगत कई वर्षों से दिग्भ्रमित (नक्सल प्रभावित) युवाओं को बंदूक छोड़कर कला के क्षेत्र में ला रहे हैं और अब तक 350 से ज्यादा युवाओं को काष्ठकला में पारंगत कर चुके हैं। 54 वर्षीय मंडावी के कारण 400 से ज्यादा युवा काष्ठकला के जरिए आत्मनिर्भर भी हुए हैं। मंडावी ऐसे कलाकार हैं, जो अपनी कला के जरिए देश के लिए नासूर बनी नक्सलवादी विचारधारा रखने वाले लोगों के विचारों में परिवर्तन ला रहे हैं। जिला जेल के करीब दो सौ ऐसे बंदियों को उन्होंने काष्ठ शिल्प में पारंगत किया है, जो कभी नक्सली थे।
5000 बाद सुलताना डाकू का किरदार निभा चुके हैं डोमार
डोमार सिंह कुंवर छत्तीसगढ़ की विख्यात विधा नाचा के कलाकार हैं। 75 वर्षीय डोमार का पूरा जीवन इस विधा के प्रति समर्पित कर चुके हैं। वे बालोद जिले के लाटाबोड गांव के रहने वाले हैं। वे देशभर में 5000 बार मंचित सुलताना डाकू में किरदार निभा चुके हैं। अपनी कला के जरिए वे वर्षों से सामाजिक बुराइयों, खासकर बाल विवाह के खिलाफ जागरुकता फैलाने में भी लगे हैं। उन्होंने 12 साल की उम्र में पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी थी। तभी से नाचा व गम्मत की प्रस्तुति कर रहे है। वे नाचा गम्मत की प्रस्तुति के साथ ही 150 से ज्यादा प्रेरणाप्रद गीत भी लिख चुके हैं। इसके अलावा मन के बात मन म रहिगे जैसी तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण और उसमें काम कर चुके हैं।