JAGDALPUR. 2000 हजार के नोट बंद होने के बाद से नक्सली परेशान हैं। इस बीच, नक्सलियों ने नोट बंदी पर एक विज्ञप्ति जारी की है। दक्षिण सब जोनल ब्यूरो के प्रवक्ता समता ने 2016 के नोट बंदी का जिक्र करते हुए 106 लोगों के मारे जाने की बात लिखी गई है। जारी विज्ञप्ति में इस फैसले को ब्राम्हणीय हिंदुत्व फासीवादी करार दिया है। माओवादियों इस फैसले के खिलाफ आंदोलन करने की बात लिखी है। इसके साथ ही बौखलाए नक्सलियों ने नोटबंदी को ई-कॉमर्स कंपनियों और अडानी रिलायंस का जिक्र करते हुए आरोप लगाया है कि यह फैसला उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है। माओवादी समता ने इन विज्ञप्ति में कई मुद्दों का जिक्र किया है। इसके साथ ही नोट बंदी के खिलाफ जनआंदोलन चलाने की अपील की है।
जारी विज्ञप्ति में लिखा है कि मोदी सरकार ने 2016 में भी नोटबंदी की थी, जिसके बाद भी कुछ काला धन नहीं मिला था। इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को ₹500000 का नुकसान हुआ था, जिसे जनता से कर के रूप में गया था। आज देश का जीडीपी 250 लाख करोड़ है। 94 फ़ीसदी आबादी असंगठित क्षेत्र में जीवन यापन कर रहे हैं। विश्लेषक बताते हैं कि नोटबंदी से नुकसान नहीं हुआ है, जबकि यह गलत आंकलन है। समता ने लिखा है कि इन फांसीवादियों ने देश की अर्थव्यवस्था को डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलने का काम कर रहे हैं। खासकर अमेरिकी डिजिटल लेनदेन चलाने वाले कंपनियों और रिलायंस, अडानी, टाटा वगैरह कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए यह नोटबंदी हुआ है।
माओवादियों ने अपील की है कि किसान, मजदूर, कर्मचारी, छात्र, नौजवान, दलित, आदिवासी महिलाएं आदि जनताना सरकार की क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल होकर वैकल्पिक व्यवस्था बनाने में योगदान दें। बता दें कि नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों के पास लाखों रुपए के दो हजार के नोट हैं, जिन्हें खपाने के लिए ग्रामीणों की मदद ली जा रही है। इसके कारण पुलिस ने बैंकों में सख्ती बढ़ा दी है। दक्षिण बस्तर में आठ लाख रुपए के साथ ग्रामीणों को पकड़ा गया था।