Tirandaj, Desk। चीन में बौद्ध लोगों का उत्पीड़न लगातार किया जा रहा है। चीन बौद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन तिब्बती लोगों की आस्था और उनकी परंपराओं पर कुठाराघात किया जा रहा है, जो चीन के पहले राष्ट्रपति माओत्से तुंग के कार्यों को आगे बढ़ा रहा है। तुंग ने 16 मई 1966 को शुरू की गई सांस्कृतिक क्रांति के बाद से बौद्ध धर्म चीन के निशाने पर है।
मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि है चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में दिसंबर 2021 से अब तक तिब्बत में तीन बौद्ध मूर्तियों को नष्ट किया जा चुका है। इसके अलावा बीते कुछ दिनों में जहां कई तिब्बती मठों को हानि पहुंचाई गई है, वहीं बौद्ध भिक्षुओं पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं।
बौद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने और मठों को ध्वस्त करके चीन तिब्बतियों के विश्वास और तिब्बती परंपराओं को संरक्षित करने के उनके अधिकार को नष्ट करना चाहता है। इसके लिए चीन ने पिछले कुछ समय से अपना रुख आक्रामक कर लिया है। दरअसल, तिब्बती बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा साफ कर चुके हैं कि उनके निधन के बाद उनका अवतार भारत में मिलेगा।
उन्होंने यह भी साफ किया था कि उनके बाद चीन द्वारा नामित किसी अन्य उत्तराधिकारी को स्वीकार नहीं किया जाएगा। गौरतलब है कि दलाई लामा को बौद्ध धर्मगुरुओं का अवतार माना जाता है। वे दुनिया भर के सभी बौद्धों का मार्गदर्शन करते हैं। वे 1959 से भारत में निर्वासितों का जीवन जी रहे हैं।
तिब्बती बौद्ध धर्म को चीनी सरकार के अनुकूल बनाने की कोशिश में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भारतीय तिब्बती बौद्ध धर्म गुरू के बदले चीनी गुरू को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगी है। इसी के तहत नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी को विकसित करने में चीन सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
इसको लेकर चीन नेपाल सरकार को तीन मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद भी दी है, जिससे लुंबिनी में हवाई अड्डा, हाईवे, कंवेशन सेंटर और बौद्ध विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। दरअसल, चीन भारत में बोधगया की तर्ज पर लुंबिनी को विकसित करने में लगा हुआ है।