BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कथित क्रूरता को जीवनसाथी ने बाद में क्षमा कर दिया हो, तो वह तलाक का आधार नहीं मानी जाएगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि मानसिक क्रूरता साबित करने के लिए ठोस प्रमाण जरूरी हैं। प्रमाणों के अभाव में हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पति की अपील खारिज कर दी।

जांजगीर के रहने वाले युवक की शादी 11 दिसंबर 2020 को मुंगेली निवासी युवती से हुई थी। अक्टूबर 2022 में बेटी के जन्म के बाद रिश्तों में तनाव बढ़ा। पति का आरोप था कि पत्नी अनजान नंबरों से आए कॉल सुना कर उसे अपशब्द कहती थी। उसने यह भी दावा किया कि पत्नी ने अश्लील वीडियो वायरल करने तथा दहेज व टोनही मामले में फंसाने की धमकी दी। इसी विवाद के बीच पत्नी 29 मार्च 2023 को घर छोड़कर मायके चली गई थी।

फैमिली कोर्ट ने कहा क्रूरता के सबूत नहीं
पति ने 4 अप्रैल 2023 को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक का आवेदन दायर किया, लेकिन 20 अगस्त 2024 को फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि पति मानसिक क्रूरता के आरोपों को साबित नहीं कर पाया। इसी के बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील की।
हाईकोर्ट में पति ने दलील दी कि नवंबर 2022 में एक सामाजिक बैठक में पत्नी के पास से तीन सिम कार्ड मिले। समझाइश के बाद कुछ समय माहौल सामान्य रहा, लेकिन विवाद दोबारा शुरू हुआ। 16 मार्च 2023 को पत्नी ने उसे दहेज और टोनही केस में फंसाने की धमकी दी। उसने कहा कि इन तनावों के कारण पत्नी अलग रहने लगी।

पत्नी का दावा—मैं पति के साथ रहना चाहती हूँ
पत्नी ने सभी आरोपों से इनकार किया और कहा पति का मकान को लेकर अपने भाई से विवाद था। उसने मनगढ़ंत आरोप लगाकर उसे छोड़ने की कोशिश की। आज भी वह पति के साथ रहना चाहती है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि पति कथित क्रूरता का कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सका। यदि कोई घटना हुई भी हो, तो उसने बाद में पत्नी को माफ कर दिया, इस कारण वह तलाक का आधार नहीं बन सकती। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 23(1)(b) के तहत क्षमा की गई क्रूरता पर तलाक नहीं दिया जा सकता।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि नवंबर 2022 से 29 मार्च 2023 तक दंपत्ति साथ रहते रहे, जिससे स्पष्ट है कि पति ने किसी भी कथित घटना को स्वीकार कर संबंध निभाने का प्रयास किया।


































